कोदापाखा में सर्कल स्तरीय गायता जोहरनी कार्यक्रम का आयोजन

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दुर्गूकोंदल। नवाखाई पर्व के बाद ग्राम कोदापाखा में सर्कल स्तरीय गायता जोहरनी कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बूढ़ादेव, ठाकुरदेव, शीतला माता की पूजा अर्चना कर गायता जोहरनी कार्यक्रम की शुभारंभ किया गया। गायता जोहरनी पर समाज प्रमुख, गांवों से पहुंचे मूलनिवासी समाज के लोगों ने 12गांवों गायता, पटेल से भेंट किया। नवाखाई पर्व की शुभ संदेश दिया। इसके उपरांत सभी गायता, समाज प्रमुखों ने गायता जोहरनी कार्यक्रम पर सामाज व्यवस्था, देव व्यवस्था, गांव व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने का सुझाव दिया। समाज में बाधक बने शराब को दूर करने ठोस पहल करने की सुझाव दिया गया है। गोड़ समाज ब्लाक उपाध्यक्ष रामचंद्र कल्लो, रमेश दुग्गा, जगत दुग्गा ने कहा कि गांव में एक साथ रहते हैं, सब एक साथ नवाखानी पर्व मनायें। नवाखाई पर्व को मनाने को लेकर एकमत रहें। समाज में युवा भागीदारी निभाएं। समाज से समाज के रीति-रिवाज को जानें। यह कहा कि शादियों में तत्काल रिश्ते बनाकर शादी करने की परंपरा को दूर करें। और दो तीन वर्ष पूर्व से लड़की लड़का परिवार शादी का रिश्ता बनाना शुरू करें। ताकि लड़की और लड़का एक दूसरे के आचरण को अच्छी तरह से समझ सकें। दोनों परिवारों के सदस्यों से भी वाकिफ हों। इस तरह से वैवाहिक रिश्ते बनाने से विवाह के बाद विवाद कम होंगे। जनपद सदस्य देवलाल नरेटी ने कहा समाज का मंच अच्छा अवसर है, यहां सबकुछ सीखने को मिलती है। समाज में जो आकर बैठेगा, समाज लोगों की बात सुनेगा। वह जरूर अच्छा बनेगा। अच्छी अच्छी बातें सीखेगा। ग्राम सुखई के ग्राम गायता प्रतिनिधि आनंद माहवे ने कहा कि मूलनिवासी समाज की परंपरा, विश्व की सबसे सर्वोच्च परंपरा है। ऐसी परंपरा आपको कहीं भी देखने नहीं मिलेगा। हम अपने पूर्वजों को देव मानने वाले लोग हैं। अपने दिवंगत माताओं को माता मंदिर में स्थापित करते हैं, और दिवंगत पिता को डोकरा घर में देव मानते हैं, देव कोठार में स्थापित देव भी हमारे पूर्वज हैं, इसलिए हम जो फसल उगाते हैं, उन फसलों को पूर्वजों को खिलाते हैं, फिर परिवार के साथ बैठकर खुद खाते हैं, हर त्यौहार में अपने पूर्वज माता-पिता का ही पूजा मंदिर और डोकरा घरों करते हैं। आदिम परंपरा हमें मां बाप को भगवान मानने की परंपरा सिखाती है, इसलिए गांव गायता, पटेल, सिरहा, गुनिया, मंडा देव प्रमुखों से अनुरोध कि हमारे भावी पीढ़ी को टंडा, मंडा, कुंडा और गांव व्यवस्था की परिचय बैठाकर करायें। मंदिर में कितने माताएं हैं, एक परिवार के डोकरा घर में कितने पूर्वज पिता हैं, एक टंडा में कितने गोत्र के लोग होते हैं, एक मंडा में कितने गोत्र परिवार के लोग बैठते हैं, इसे सीखाने की जरूरत है। वहीं सिविल जज दंतेश्वरी नरेटी ने कहा मैं जहां बेटी हूं, वहां ये प्राचीन संस्कृति कम ही देखी हूं, अब इस गांव क्षेत्र में बहू बनकर आई हूं। और मुझे यहां की संस्कृति, सामाजिक व्यवस्था देखकर गर्व महसूस हो रही है। हमारी पहचान हमारी संस्कृति है, इसे नहीं खोना है, समाज में शराब सबसे बड़ी बाधक है, इसे मिटाना है। इसलिए समाज में ठोस पहल हो ताकि समाज के भीतर शराब बाहर निकले। क्योंकि शराब की जड़ मजबूत हुई तो समाज की संस्कृति, व्यवस्था क्षीण हो जायेगी। समाज में महिलाओं की भागीदारी हो। इसके अधिक से महिलाओं मंच साझा करने का अवसर दें। इस अवसर पर तुलसी मातलाम, दिनेश नरेटी, मुकेश गावड़े, सन्नू कोमरा, बज्जू कोमरा, चैनू नरेटी, संपत नरेटी, फागेन्द्र कोमरा, रमशीला कोमरा, सुमित्रा दुग्गा, नाथूराम दुग्गा, कल्याण दुग्गा, भारत सलाम, नेमालाल कोमरा, रामदुलार देहारी, रामप्रसाद नरेटी, पतिराम नरेटी, बजारू दुग्गा सहित बड़ी संख्या में क्षेत्र महिला पुरूष समाज प्रमुख उपस्थित थे।

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