गहरा सकता है जल संकट, गंगरेल में 8 फीसदी पानी बाकी
धमतरी। गंगरेल बांध अपने इतिहास के सबसे गंभीर जलसंकट का सामना कर रहा है। फिलहाल बांध की कुल क्षमता के मुकाबले सिर्फ आठ फीसदी पानी बचा हुआ है। भूजल स्तर खतरनाक स्तर तक नीचे जा चुका है। अभी मानसून आने में करीब तीन हफ्ते का समय बाकी है। ऐसे में अगर मानसून के आने में थोड़ी और देर हो गई तो स्थिति भयावह हो सकती है। धमतरी स्थित गंगरेल बांध की जलभराव क्षमता कुल 32 टीएमसी है। टीएमसी का मतलब थाउजेंड मिलियन क्यूबिक फीट। इसे थोड़ा और आसान करें तो एक टीएमसी का मतलब 28 अरब 31 करोड़ लीटर होता है। अभी बांध में सिर्फ 2 टीएमसी उपयोगी जल रह गया है।
पहले लबालब भरे बांध में बोटिंग होती थी अब सूखी पथरीली जमीन नजर आ रही है। कहीं दूर में पानी दिखाई दे रहा है। जो पानी बचा हुआ है और जो खपत है उसके मुताबिक इतना पानी करीब 85 दिन ही चल पाएगा। 1978 में बने गंगरेल बांध में इस तरह का गंभीर जल संकट पहली बार देखा जा रहा है। गंगरेल बांध से ही भिलाई इस्पात को पानी की सप्लाई होती है। इसके अलावा धमतरी, रायपुर, बिरगांव नगर निगम के लाखों लोगों को भी पेयजल गंगरेल से ही मिलता है। फिलहाल गंभीर स्थिति को देखते हुए भिलाई इस्पात को पानी की सप्लाई रोकी गई है लेकिन पेयजल के लिए पानी लगातार दिया जा रहा है। प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि बांध का डेड स्टोरेज हिट हो चुका है।
बांध में जलसंकट का सबसे मुख्य कारण बीते साल कमजोर बारिश है। दूसरा बड़ा कारण भूजल स्तर का खतरनाक लेवल तक नीचे जाना है। ऐसे में 5 जिलों के 800 से ज्यादा तालाबों को गंगरेल बांध से भरना पड़ा ताकि लोगों को निस्तारी का संकट न हो। सिर्फ धमतरी जिले की बात करें तो यहां 750 हैंड पम्प सूख चुके है।