प्रभु राम साक्षात धर्म हैं” जो मनुष्य धर्म के मार्ग पर अडिग रहेगा वही बुराई से लड़ सकता है : अनिरुद्धाचार्य महाराज

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मनुष्य का धर्म क्या है- श्रद्धालुओं को बताया विस्तार से अनिरुद्धाचार्य महाराज ने

पूरा देश आज भारत को व्यापार की दृष्टि से देखता है लेकिन भारत परिवार की तरह

रायपुर। अवधपुरी मैदान गुढिय़ारी में स्व. सत्यनारायण बाजारी (मन्नू भाई) की पुण्य स्मृति में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन शनिवार को विश्व विख्यात कथावाचक अनिरुद्धाचार्य महाराज ने श्रद्धालुजनों से कहा कि भागवत जी मनुष्य के कल्याण का एक मात्र साधन है, बहुतों को शिक्षा देता है भागवत। आज हम जानेेंगे कि मनुष्य का धर्म क्या है। रावण ने एक वरदान मांगा था कि वह बंदर के हाथों मरे या मनुष्य के हाथों क्योंकि मनुष्य और बंदरों को खा जाते थे। मनुष्य वो नहीं है जो मनुष्य जैसा दिखता हो, मनुष्य हो है जिसके अंदर मनुष्यता हो। क्या हमारे अंदर मनुष्यता है, यदि है तो मनुष्यत: कैसी है?

भगवान राम क्या थे लेकिन इस धरती पर मनुष्य बनकर आए तो मनुष्य कैसा होना चाहिए राम जैसा। रामजी ने 13 हजार वर्षों तक इस धरती पर राज किया है लेकिन उन्होंने इस दौरान एक अभी झूठ, छल, कपट, नींदा, चुकली, सताया और राम जी के कारण किसी के आँखों में आंसू नहीं आए। राम तो अभी भी अपने कण-कण है लेकिन उस लीला को करने के लिए वे 13 हजार वर्षों तक हमारे लिए धरती पर रहे। रावण अगर भगवान राम के शरण में आ जाता तो वे माफ कर देते लेकिन वे आए ही नहीं। रामजी मनुष्य है और जिसके अंदर उनके जैसा लक्षण है वह 24 कैरेट शुद्ध मनुष्य है और जिसके अंदर काम, क्रोध, लोभ, नींदा, चुकली, छल, कपट मिला हुआ है उस मनुष्य का कैरेट कम तो होगा ही। आप देवता बाद में बनना पहले मनुष्य बनें। रावण बुराई का प्रतिक है और यदि रावण जैसी बुराई जब तक मिटेगी नहीं तब तक भगवान राम जैसा मनुष्य पैदा हो ही नहीं सकता। जिस दिन आप मनुष्य बन गए उस दिन से आपके अंदर की बुराई समाप्त हो जाएगी।


व्यर्थ की बकवास तुम आज सुनते हो इसलिए घर टूट रहे है

अनिरुद्धाचार्य महाराज ने श्रद्धालुओं को बताया कि रावण की 10 इच्छाएं थी जिसमें पहला सुना, देखा और तीसरा छूने की और ये तीनों इच्छाएं बहुत ही खतरनाक है, अगर रावण ने अपनी बहन की बात नहीं सुनी होती तो आज उसका सत्यानाश नहीं होता। व्यर्थ की बकवास तुम आज सुन रहे हो इसलिए आज तुम्हारे घर टूट रहे हैं और इस बकवास का इतिहास गवाह है। कैकयी माँ ने मंथरा और दुर्योधन ने शकुनी की बात मान ली थी और इसी कारण उनका भी वही हाल हुआ तो रावण का हुआ था। बुरा सुनोंगे तो नाश, बुरा देखोगे तो नाश और बुरा बोलना भी नहीं है क्योंकि अगर बुरा बोलेगे तो आग लगेगी। जो मनुष्य धर्म पर चलने वाला होगा वही इस बुराई से लड़ सकता है और यह तब होगा जब आप मनुष्य बनोगे। किसी की हत्या करना नहीं है सही।

भगवान राम साक्षात धर्म है

महाराजश्री ने कहा कि भगवान राम साक्षात धर्म है और इसकी बारीकियों को महाराज ने बताया कि दया, परोपकार और सत्य ही धर्म है। आज इतने निरदायी हो गए लोग कि मच्छली, मुर्गी को खा जाते है, देवी-देवताओं के नाम पर बकरे की बलि दे दी जाती है और बोलते है कि हम देवी को प्रसंन्न कर रहे है। लेकिन किसी की हत्या करना सही नहीं है। पूरी दुनिया में हिन्दू और सनातन संस्कृति श्रेष्ठ है क्योंकि एक सनातनी कहता है कि किसी को मार देना अहिंसा है। किसके धर्म, मजहब और पंथ में हिंसा की बात होती है, जो लोग अपने त्यौहारों में बकरों को कांटकर उनकी बलि चढ़ाकर उत्सव मनाते है लेकिन हिन्दू संस्कृति में दीपावली आई तो दीये जलाए जाते है, होली पर रंग-गुलाल लगाया जाता है इस दौरान गलियां तो लाल होती है लेकिन बकरों के खूनों से नहीं और यही सनातन है। सारी संस्कृति में सनातन श्रेष्ठ है क्योंकि सनातन धर्म ही पूरी दुनिया को अहिंसा का मैसेज देता है।

भारत कहता है यह पूरी दुनिया उनका परिवार है

एक देश दूसरे देश को व्यापार की दृष्टि से भारत को बाजार का चाइना कहता है क्योंकि भारत का बाजार बहुत बड़ा है। अमेरिका, जापान, इंग्लैंड कहता है भारत बहुत बड़ा बाजार है लेकिन भारत कहता है यह पूरी दुनिया उनका परिवार है। पूरी दुनिया को परिवार मानने वाला ही सनातनि है, अगर सनातनि नहीं होते तो आज दुनिया टूकड़ों में बंट जाता। मजहब पंथ में बंटी हुई लेकिन सनातन संस्कृति सबको गले लगाने का काम कर रही है इसलिए सनातन संस्कृति सबसे श्रेष्ठ संस्कृति है।

हत्या अपने स्वार्थ के लिए करेंगे तो वह तुम्हें दुआएं तो देगा नहीं !

ऋषि-मुनियों ने वेद और पुराणों में दाल, चांवल सब्जी-रोटी खाने की इजाजत दी है, मांस की नहीं। पूरी दुनिया में इतने सारी स्त्रियां और पुरुष है लेकिन इतने लोगों में एक स्त्री है जिसका आप हाथ पकड़कर चल सकती है जिसको आप अपनी अर्धांगनी कह सकते है जिसका आप हाथ पकड़कर चल सकते है। इतने पुरुष यहां कथा सुन रहे है,जिसमें से आप यह कह सकती हो कि यह मेरा पति है, क्या तुम सारे पुरुषों का हाथ पकड़ सकती हो। जान तो सबके अंदर है जैसे बकरे, मछली व अनाज के अंदर लेकिन जब हमारी पत्नी से हमारा विवाह हुआ तो समाज ने यह मंजूरी दे दी कि आप इसका हाथ पकड़ के चल सकते हो। अगर विवाह नहीं करके आप किसी स्त्री का हाथ पकड़कर चलते है तो समाज लाख प्रश्न करता है। उसी प्रकार जान तो पशु-पक्षी में भी है लेकिन दाल, चांवल सब्जी-रोटी की जो जान है उसे खाने इजाजत हमारे ऋषि-मुनियों ने वेद और पुराणों में दे दी है, पर मांस खाने का इजाजत नहीं दी है। मांस को खाओगे तो सर्वनाश को प्राप्त हो जाओगे, क्योंकि आप किसी की हत्या अपने स्वार्थ के लिए करेंगे तो वह तुम्हें दुआएं तो देगा नहीं।

जो सबसे ज्यादा लालच करता है उसका परिणाम दुर्योधन जैसा होता है

महाराजश्री ने कहा कि जो सबसे ज्यादा लालच करता है उसका परिणाम दुर्योधन जैसा होता है, जो अपनी भाई की संपत्ति हड़पना चाहता है उस भाई का कभी कल्याण नहीं होता, आप अपने भाई की संपत्ति क्यों हड़पे, भाई की संपत्ति हड़पना चाहा दुर्योधन ने उसका सर्वनाश हो गया और रोने वाला कोई नहीं बचा। उन्होंने कहा कि आप भी यही सोचते है कि मुझे मेरे भाई का धन मिल जाए, लेकिन यह गलत है। अगर सही बटवारा होता और पंडावों को उनका अधिकार दे दिया गया होता तो कभी महाभारत नहीं होता।

*मरने से पहले ही बच्चों में बंटवारा कर देना*

कथा में उपस्थित लोगों से महाराजश्री ने कहा कि मरने से पहले आप सभी अपने – अपने बच्चों का समय पर बंटवारा कर देना,अगर बिना बंटवारा किए मर गए तो वो आपस में लड़ेंगे। भाईयों का बंटवारा उचित करना अनुचित बंटवारा मत करना, बड़े अधिकार बड़े को और छोटे का अधिकार छोटे को देना चाहिए। वहीं दूसरी ओर माँ-पिता कई बार पक्षपात भी करते है बड़े को ज्यादा और छोटे को कम या छोटे को ज्यादा या बड़े को कम दे देते है, कुछ संपत्ति अपने लिए भी बचाकर रखना चाहिए ताकि अंतिम समय पर जो सेवा करें उसे वह हक मिल जाए। जितने बच्चे है सबसे बराकर स्नेह व प्यार करना चाहिए और बच्चों को भी चाहिए कि वह भले ही चार भाई हो लेकिन माता-पिता की सेवा प्रेम पूर्वक करें। संपत्ति पर ही नजर गढाए मत रखो, माता-पिता की भी सेवा करों।

अनिरुद्धाचार्य जी महाराजश्री ने अवधपुरी मैदान गुढ़ियारी में स्व.  सत्यनारायण बाजारी (मन्नू भाई) की पुण्य स्मृति में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस प्रभु गौरी-गोपाल को पुष्प माला अर्पित कर आरती की। कृष्णा बाजारी परिवार एवं आयोजन समिति के कुछ प्रमुख पदाधिकारीगण शामिल हुए।
तारा है सारा जमाना, नाथ हमको भी तारो…! संगीतमयी, सुमधुर भजन में हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुगण झूमते-नाचते रहे। कथा के दौरान महाराजश्री के मुखारवरिंद से संगीतमयी गीतों से सभी भाव-विभोर हो गये। कथा का समापन गौरी-गोपाल जी की आरती से हुआ। कार्यक्रम व्यवस्था में ओमप्रकाश मिश्रा, ओमकार बैस, ओमप्रकाश बाजारी, नितिन कुमार झा, विकास सेठिया, सुनील बाजारी, सौरभ मिश्रा,दीपक अग्रवाल, अभिषेक अग्रवाल सहित सैकड़ों पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता सक्रिय रहे।

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