उत्तर बस्तर में निरूत्तर होती दिख रही है कांग्रेस
– मतांतरण, विद्रोह और भीतरघात का तीन विधानसभा में दिख रहा असर
– भाजपा से केदार तो, कांग्रेस से सावित्री मंडावी की पकड़ मजबूत
अनुराग शुक्ला ( न्यूज टर्मिनल : जगदलपुर)
आगामी विधानसभा चुनाव में बस्तर की बारह सीटों पर राज करने वाली कांग्रेस की पकड उत्तर बस्तर की तीन सीटों पर कमजोर होती नजर आ रही है। मतांतरण, विद्रोह व भीतरघाट के चलते कोंडागांव, अंतागढ व नाराणपुर की विधानसभा में मतदाताओं का रूझान बदला हुआ नजर आ रहा है। उत्तर बस्तर की सीटों में से भानुप्रतापपुर की कांग्रेस प्रत्याशी सावित्री मंडावी की पकड मजबूत दिखाई पकड रही है। इसके अलावा मतांतरण को लेकर प्रदेश भर में सुर्खियों में रहे नारायणपुर का असर यहां की सीट पर खासा होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। यदि ऐसा होता है तो यह चुनाव में भाजपा के लिए फायदेमंद साबित होता नजर आएगा। इससे यहां पर भाजपा प्रत्याशी केदार कश्यप को फायदा मिलने की अधिक संभावना व्यक्त की जा रही है। इस सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी फूलसिंह कचराम के खडे होने से मसीह वोटों का नुक्सान कांग्रेस को उठाना पड सकता है। नारायणपुर में कथित तौर पर त्रिकोणीय समीकरण है जिसमें एक तरफ मसीह समाज के सदस्य लामबंद है जो कांग्रेस का सीधा घाटा है। मालूम हो कि केदार कश्यप अपने निकटतम कांग्रेस के प्रत्याशी चंदन कश्यप से गत चुनाव में महज २६४७ मतों से हारे थे। नारायणपुर विधानसभा में भानपुरी इलाके के ८२ पोलिंग बूथ आते हैं जो कि अब तक निर्णायक साबित होते रहे हैं लेकिन इस बार इस विधानसभा के समीकरण बदले नजर आ रहे हैं। कोंडागांव विधानसभा में भले ही भाजपा ने तीन बार हार सामने करने वाली प्रत्याशी लता उसेंडी पर ही विश्वास जताया है लेकिन इस बार यहां की जनता के सुर बदले हुए हैं। विकास की बात खुलकर सामने आ रही है। कांग्रेस के प्रत्याशी मोहन मरकाम विधायक बनने के साथ ही प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने। लोगो का मानना है कि वे अपनी व्यस्तता के चलते लोगो से कटते चले गए। यही नहीं मोहन मरकाम को सत्ता पर काबिज करने वाले उनके समर्थकों को भी इस बीच हुए अन्य चुनाव में सार्थक प्रतिसाद नहीं मिला। समय के साथ जो लोग मोहन मरकाम की जीत के लिए तत्पर थे वे ही अब उनके खिलाफ काम करने में गुरेज नहीं कर रहे हैं। कोंडागांव विधानसभा में खुलकर बगावत की बात सामने आ रही है साथ ही मतदाता यहां पर चुप्पी साधा हुआ है। मोहन मरकाम के पास उनकी दो बार की जीत है। वे तिकडी लगाने की तैयारी में हैं। प्रदेश की राजनीति में उनके दखल और चुनाव से ठीक पहले प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटने का असर भी इस विधानसभा चुनाव में दिखने की संभावना है। भाजपा की प्रत्याशी लता उसेंडी को इन सभी क्रियाकलापों का फायदा मिलने की संभावना है। उत्तर बस्तर की तीसरी सीट पर हम बात करें तो यह है अंतागढ जहां पर पूर्व विधायक अनूप नाग की कांग्रेस ने टिकट काट दी और वे निर्दलीय मैदान में उतर आए हैं। अनूप नाग के मैदान में होने से कांग्रेस को सीधा नुक्सान है। यहां से भाजपा ने अपने प्रत्याशी के तौर पर विक्रम उसेंडी पर एक बार फिर भरोसा जताया है। अंतागढ में खुले विद्रोह के बाद यह माना जा रहा है कि भाजपा अपने बूते पर नहीं कांग्रेसियों के बंटने के लाभ पर नजर टिकाए बैठी है। इस लिहाजे से उत्तर बस्तर की जो तस्वीर सामने आ रही है इससे यह प्रतीत हो रहा है कि भाजपा और कांग्रेस के बीच यहां की छह सीटें बराबर बंट सकती है।