कंगना की ‘चमक’ और विक्रमादित्य के रुतबे के बीच मुकाबला
मंडी सीट पर सिनेमाई बनाम सियासी ग्लैमर की है दिलचस्प लड़ाई
नई दिल्ली। हिमाचल का सर्वाधिक चर्चित राजनीतिक केंद्र मंडी, कभी मांडव नगर था। तिब्बती भाषा में इसे जहोर कहते थे। मंडी शब्द संस्कृत के मंडोइका से बना है, जिसका अर्थ होता है खुला क्षेत्र। चारों तरफ चट्टानों का घेरा और उनके बीच से होकर गुजरती ब्यास नदी। कभी रियासत की राजधानी रही मंडी को यहां के लोग वाराणसी आफ हिल्स, हिमाचल की काशी या छोटी काशी भी कहते हैं। होटल मैनेजमेंट कोर्स कर रहे युवा अक्षय गर्व से कहते हैं कि वाराणसी की काशी में 80 मंदिर हैं, जबकि यहां पर 81 मंदिर हैं। मंडी के प्रवेश द्वार सलापड़ से संसदीय क्षेत्र में प्रवेश करने पर इस इंतजार में हम आगे बढ़ते रहे कि शायद अब कहीं चुनावी माहौल, नजर आ जाए। पर एक अलग सी खामोशी है यहां पर। बहुत कुरेदने पर मतदाता स्थानीय मंडियाली बोली में कहते हैं-एक मट्ठा कने एक मट्ठी, हल्ली लाईरे दुंहाए परखणे। यानी एक बेटा है और एक बेटी है, दोनों को परख रहे, फिर करेंगे वोट। ये देखना मजेदार होगा कि किसके पक्ष में जाता है जनता का वीटो पावर।
मुद्दे संग आक्रोश भी
पंडोह तीन विधानसभा क्षेत्रों का केंद्र है। सिराज, द्रंग और मंडी के लोग इससे सीधे तौर पर जुड़े हैं। बीते वर्ष आई आपदा में टूटा पंडोह का पुल साक्षी है कि लोग किस कदर जान हथेली पर लेकर रह रहे हैं। इस पुल के कारण जो रास्ता एक से दो मिनट का होता था, वो अब सात-आठ किमी लंबा हो गया है। स्थानीय निवासी अर्जन सिंह, कुलदीप व व्यापार मंडल के प्रधान अश्विनी कुमार कहते हैं कि पुल टूटने से काम पूरी तरह चौपट हो गया, सुनवाई नहीं होती। इतने अहम इलाके में न तहसील है, न बीडीओ दफ्तर व अस्पताल। एक कॉलेज की घोषणा हुई थी, पर नई सरकार ने उसे रद्द कर दिया।