बहुत छाले हैं उसके पैरों में, जरूर उसूलों पर चला होगा।

Spread the love

 

राजेश दुबे

समूह सम्पादक, चैनल इंडिया

वैश्विक महामारी कोविड 19 से बचने-बचाने के लिए जब दुनिया भर के देशों के साथ भारत के राज्यों के हाथ-पैर फूल रहे हैं, ऐसी विषम परिस्थितियों में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कुशल व धारदार नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में इस पर अंकुश लगा लेना किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। सीमित संसाधन होने के बावजूद भूपेश बघेल ने वह करिश्मा दिखा दिया, जिसके कारण वे देशभर में दूसरे नम्बर के लोकप्रिय मुख्यमंत्री बन गए। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के लिए निश्चित रूप से यह गौरव का क्षण होना चाहिए कि भले ही किसी निजी कम्पनी ने ही यह मूल्यांकन क्यों न किया हो लेकिन इस मूल्यांकन ने भूपेश बघेल को राष्ट्रीय स्तर का नेता बना दिया। कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों में अपने कामकाज व सुशासन की बदौलत पहले नम्बर पर आकर भूपेश बघेल ने ढाई करोड़ छत्तीसगढिय़ों को निश्चित रूप से गौरवान्वित किया है।

 

कोविड 19 से लडऩे वाले राज्यों में सर्वेक्षण करने वाली इस निजी कम्पनी ने अपने सर्वेक्षण का फार्मूला तो सार्वजनिक नहीं किया है परंतु यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इसमें कम्पनी स्वास्थ्य सुविधाओं के अलावा प्रदेश की आर्थिक स्थिति तथा प्रवासी मजदूरों की स्थितियों के बारे में अवश्य पता लगाया होगा। भूपेश बघेल की नेतृत्व क्षमता तथा दूरदर्शिता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मार्च में होली से ठीक पहले जैसे ही उन्हें इस बीमारी का अहसास हुआ, पहले तो उन्होंने होली मिलन समेत अपने सभी सार्वजनिक कार्यक्रम रद्द कर दिए और इसके तत्काल बाद छत्तीसगढ़ से लगी अन्य राज्यों की सभी सीमाओं को सील कर दिया। इस बीमारी से लडऩे के लिए उन्होंने सीएम हाउस को वॉर हाउस में तब्दील कर दिया और फिर अपने स्वभाव के अनुरूप लड़ाई शुरू कर दी।

25 मार्च से शुरू हुए लॉक डाउन के दौरान प्रदेशवासियों को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो, इसके लिए वे लगातार मैराथन बैठकें करते रहे, देश के अन्य मुख्यमंत्रियों से राय-शुमारी करते रहे। महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने अपने फैसलों को नौकरशाहों के भरोसे नहीं छोड़ा। मौका मिलते ही उसकी जमीनी हकीकत को जानने के लिए निकल पड़ते। सब्जी बाजार हो या आश्रय गृह, वृध्दाश्रम हों या फिर प्रवासी मजदूरों के आश्रय स्थल। इस दौरान उन्होंने प्रदेश के सभी राशनकॉर्ड और गैर राशनकार्ड धारियों के लिए मुफ्त में अन्न की व्यवस्था करके यह संदेश दिया कि कुछ भी हो जाए, उनकी सरकार किसी को भूखा सोने नहीं देगी।

इस दौरान वे अर्थ व्यवस्था करने में भी लगे रहे। छत्तीसगढ़ के हक की राशि देने के लिए वे लगातार प्रधानमंत्री से लेकर अन्य केंद्रीय मंत्रियों पर चिट्ठियों के माध्यम से दबाव बनाते रहे। कुछ हद तक उन्हें इसमें सफलता भी मिली। मुख्यमंत्री ने इस बीमारी से लडऩे तथा प्रदेश को आर्थिक बदहाली से बचाने के लिए बस एक ही सिध्दांत पर काम किया और वह सिध्दांत यह था कि प्रदेशवासियों की जेबों में किसी न किसी माध्यम से पैसा डाला जाए। इसके लिए उन्होंने मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) के माध्यम से काम शुरू कराए, राज्य लघु वनोपजों की खरीदी शुरू कराकर वनवासियों को तत्काल भुगतान कराया और सबसे बड़ा काम उन्होंने राजीव गांधी किसान न्याय योजना की शुरुआत करके हर किसान के खाते में दस हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से डाले। इतना ही नहीं, जब देश के अन्य राज्य अपने अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन देने में मुंह-कान बना रहे थे, तब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से सख्त आदेश जारी किया है कि महीने के पहले सप्ताह में ही अधिकारियों व कर्मचारियों के खाते में उनके वेतन की राशि अनिवार्य रूप से चली जाए।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की संवेदनशीलता उस वक्त देखी गई, जब कोटा राजस्थान में कोचिंग कर रहे विद्यार्थियों के अभिभावकों ने बच्चों को छत्तीसगढ़ वापस लाने की गुहार लगाई। तत्काल भारत सरकार से अनुमति ली गई और सरकार ने अपने खर्चे पर उन बच्चों को घर पहुंचाया। भूपेश बघेल यहीं नहीं रुके, उन्हें उन छत्तीसगढिय़ों की भी चिंता थी, जो खाने-कमाने परदेश गए थे और लॉक डाउन में वहां फंस चुके थे। भारत सरकार से आग्रह करके रेलगाडिय़ों की व्यवस्था की, किराए की राशि जमा कराई और फिर शुरू हो गया छत्तीसगढिय़ों की वापसी का सिलसिला। सैकड़ों की संख्या में प्रवासी छत्तीसगढिय़ा मजदूर आज अपने घर-गांव पहुंच रहे हैं, जिनको काम-धंधे पर लगाने की शुरुआत भी कर दी गई है।

अपने घर लौट रहे परदेशी मजदूरों की पीड़ा भी भूपेश बघेल को बर्दाश्त नहीं हुई, लिहाजा वे एक बार फिर सामने आए। मुख्यमंत्री सहायता कोष में जमा राशि के अलावा समाजसेवी संस्थाओं से मदद लेकर उन्होंने यह तय किया कि छत्तीसगढ़ से गुजरने वाले अन्य राज्य के हर प्रवासी मजदूर को खाना-पानी के साथ जूते-चप्पल भी उपलब्ध कराएं जाएं ताकि जेठ की तपती दुपहरी में उन्हें कुछ राहत मिल सके। इस काम को करने की कोई विवशता नहीं थी लेकिन ग्रामीण परिवेश की पृष्ठभूमि वाले भूपेश बघेल इस पीड़ा से वाकिफ हैं और इसे महसूस करते हैं, शायद यही वजह है कि इस तरह के मानवीय कार्यों को करने की प्रेरणा उन्हें अंतर आत्मा से मिली। यह सब करते हुए उन्होंने कई रातें जागकर गुजारीं। कोशिश यही रही कि छत्तीसगढ़ के हर व्यक्ति अपने घर पहुंच जाए, अन्य राज्यों के मजदूरों को छत्तीसगढ़ की धरती पर किसी भी प्रकार का कष्ट न हो, जो संक्रमित हैं या हो रहे हैं, वे स्वस्थ्य होकर घर लौटें।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के इन कामों को पूरा देश देख रहा है। इस निजी कम्पनी ने भी देखा होगा और जब उसने सर्वेक्षण किया, तो सच सामने आ गया। पिछली सरकारें आमतौर पर इस प्रकार के फेंक सर्वेक्षण कराकर खुद को अव्वल बताकर अपनी पीठ थपथपाया करती थीं परंतु भूपेश बघेल ने छद्म प्रशंसा हासिल करने के बजाए जमीन पर काम किया, अपने उसूलों पर चले और पैरों को लहूलुहान किया। यही वजह है कि तमाम विरोध और आलोचनाओं की परवाह किए बिना उन्होंने ऐसे जनकल्याणकारी कदम उठाए कि देशव्यापी मंदी में भी जब अनलॉक:01 शुरू हुआ तो प्रदेश के बाजार गुलजार दिखाई दिए। यह तस्वीर किसी भी राज्य और उसकी सरकार के लिए बेहद सुखद मानी जा सकती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *