प्रधानमंत्री ग्राम सड़क पर धड़ल्ले से दौड़ाये जा रहे ओव्हरलोड व प्रतिबंधित वाहन
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धरना प्रदर्शन और शिकायत कर-कर के थक चुके ग्रामीण
ग्रामीणों पर बना रहता जान का खतरा, हो चुके हैं दर्जनों हादसे
गौरीशंकर गुप्ता (घरघोड़ा)। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की सड़कों पर धड़ल्ले से प्रतिबंधित वाहनों के पहिए दौड़ाये जा रहे हैं. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क.. जो कि भारी वाहनों के लिए एक प्रतिबंधित मार्ग है, जिस पर पिछले कई महीनों से ट्रांसपोर्ट कंपनियों के द्वारा धड़ल्ले से 35 से 40 टन तक की ओव्हरलोड गाड़ियां चलाई जा रही है, आपको बता दें कि तमनार से घरघोड़ा मार्ग जो कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत निर्मित एक निर्धारित क्षमता वाली सड़क है, जिसकी वहन क्षमता महज 12 टन की होती है. उक्त सड़क पर उससे कई गुना अधिक भारी वाहनों को चलाया जा रहा है. कैसे नियम/कानून की धज्जियां उड़ाते हुए रात के अंधेरे का फायदा उठाकर उक्त अशक्त सड़क पर हैवी वाहनों के पहिये रगड़े जा रहे हैं इसकी सुध प्रशासन को बिल्कुल नहीं है. ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रांसपोर्टरों में कानून का भय पूरी तरह से समाप्त हो चुका है. इस मासूम सड़क को लेकर ग्रामीणों के द्वारा हैवी वाहनों के चालन पर आपत्ति जताते हुए ट्रक चालकों को कई बार मना भी किया जा चुका है, मगर ट्रांसपोर्ट कंपनियों के ढीठ रवैये को देखकर ऐसा लगता है कि वो इस बलहीन सड़क का कचूमर निकालने पर आमादा है, इस सम्बंध में शासन/प्रशासन को जागने के उद्देश्य से ग्रामवासियों ने अनेकों बार धरना प्रदर्शन और शिकायत किया लेकिन प्रशासन के द्वारा आज तक इस पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं करने की वजह क्या है अब तक यह एक रहस्य ही बना हुआ है! एक बात तो साफ है कि प्रशासन की अनदेखी ने ही WPCL जैसी कम्पनियों के हौसले बुलंद कर रखें हैं. जिस कारण आज पर्यंत भी अनवरत ये कारनामा जारी है।
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किस तरह से ग्रामीणों की सुविधा और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है इस पीड़ा को जानने और समझने का वक़्त आखिर प्रशासन के पास क्यों नहीं है? जबकि अभी 02 दिन पहले ही एक ट्रेलर ग्राम देवगढ़ में रात के 02:00 बजे विद्युत खम्भे को तोड़ते हुए एक घर की बाड़ी में घुस गया था. जिस घटना से सुधा बाई सिदार के परिवार की जान बाल-बाल बची थी. मगर इस घटना से ट्रांसपोर्ट कम्पनियों को क्या फर्क पड़ता है! उन्हें तो बस अपने काम के जरिए धन अर्जित करने से ही मतलब है! चाहे वो किसी भी तरीके से क्यों न हो! दिन के उजाले में तो कुछ गाड़ियां ही चलायी जाती है मगर अंधेरा होते ही काफिलों की शक्ल में इन ओव्हरलोड गाड़ियों के नजारे देखे जा सकते हैं. सड़कों के जर्जर होने की चिंता तो छोड़ ही दीजिये साहब! इस बात का तो इल्म रख लेते कि ग्रामीणों की जान भी इन स्वार्थी ट्रांसपोर्टरों के आगे कितनी सस्ती हो चुकी है!