साल के अंत तक आ जाएगा बिना सुई वाला टीका
जानें क्यों जरूरी है यह नई वैक्सीन
कोरोना संक्रमण से बचाव में कारगर ऐसे टीके, जिन्हें लगाने के लिए सुई की जरूरत नहीं पड़ेगी और जो सामान्य तापमान पर भी सहेजे जा सकेंगे, साल के अंत तक इस्तेमाल के वास्ते उपलब्ध होंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वरिष्ठ वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने एक साक्षात्कार में यह जानकारी दी।
स्वामीनाथन के मुताबिक, साल 2021 के अंत तक छह से आठ नए टीकों का क्लीनिकल परीक्षण पूरा कर लिया जाएगा। औषधि नियामक संस्थाएं भी इनकी सुरक्षा आंकने का काम निपटा लेंगी। इससे 2022 की शुरुआत में कोविड-19 से मुकाबले में सक्षम वैक्सीन की संख्या मौजूदा दस से बढ़कर 16 से 18 पर पहुंच जाएगी।
इसलिए जरूरी है नई वैक्सीन
-सार्स-कोव-2 वायरस के नए स्वरूप में ढलने के मामले बढ़ रहे
-टीका निर्माता मांग पूरी करने में कठिनाइयों का सामना कर रहे
-122 मुल्कों में ही टीकाकरण शुरू किया जा सका है फिलहाल
स्प्रे या पैच के रूप में होंगी उपलब्ध
स्वामीनाथन ने बताया कि ज्यादातर नए टीके वैकल्पिक तकनीक एवं आपूर्ति प्रणाली पर आधारित हैं। इन्हें या तो नेजल स्प्रे के जरिये नाक या फिर पट्टी की मदद से त्वचा के रास्ते शरीर में पहुंचाया जाएगा। ये टीके गर्भवती महिलाओं सहित अन्य संवेदनशील समूह के लोगों के लिए कोविड-19 टीकाकरण को आसान बनाएंगे।
बड़े पैमाने पर चल रही आजमाइश
स्वामीनाथन के मुताबिक दुनियाभर में 80 से ज्यादा टीकों का क्लीनिकल परीक्षण चल रहा है। इनमें से ज्यादातर शुरुआती दौर की आजमाइश से गुजर रहे हैं। कुछ टीके इसमें असफल भी साबित हो सकते हैं। वहीं, कई कंपनियों ने टीके के संवर्द्धित रूप का असर आंकना शुरू कर दिया है, ताकि कोरोना के नए स्वरूप से निपटा जा सके।
एकल खुराक का असर आंकने के प्रयास तेज
डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञ इस बात का पता लगाने की कोशिशों में जुटे हैं कि कोरोना की जद में आ चुके लोगों को दूसरी खुराक की जरूरत है या नहीं। कुछ अध्ययनों से संकेत मिला है कि संक्रमण सार्स-कोव-2 वायरस के खिलाफ ठीक उसी तरह से प्रतिरोधक क्षमता पैदा करता है, जैसा कि टीके की पहली खुराक से होता है।
टीकाकरण को मिलेगी रफ्तार
कोविड-19 टीके की एक खुराक अगर पर्याप्त मात्रा में प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में कारगर मिलती है तो अतिरिक्त खुराक का इस्तेमाल अन्य लोगों के टीकाकरण में किया जा सकेगा। हालांकि, कई देशों के लिए यह प्रक्रिया बेहद चुनौतीपूर्ण साबित होगी। उन्हें खून की जांच से एंटीबॉडी का स्तर जांचने की जरूरत पड़ेगी, ताकि यह पता लगाया जा सके कि लाभार्थी को दूसरी खुराक दिए बिना भी काम चल जाएगा या नहीं।