परमबीर के ‘लेटर बम’ से खतरे में महाराष्ट्र सरकार…..
मुकेश अंबानी के घर के बाहर मिली संदिग्ध कार और सचिन वाझे मामले ने अब ऐसा राजनितिक मोड़ लिया है कि महाराष्ट्र की सियासी हलचल तेज हो गई है। महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख पर मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह द्वारा लगाए गए सनसनीखेज आरोपों से महाराष्ट्र सरकार के सामने मुश्किल की घड़ी खड़ी हो गई है। अनिल देशमुख पर लगे आरोपों ने सबसे अधिक एनसीपी प्रमुख शरद पवार को मुश्किल स्थिति में ला खड़ा किया है। राज्य में महाराष्ट्र विकास अघाड़ी का शरद पवार को प्रमुख आर्टिकेक्ट माना जाता है। शरद पवार ही थे, जिन्होंने तीन अलग-अलग पार्टियों (शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी) को एक बैनर तले लाने में बड़ी भूमिका निभाई।
वह शरद पवार ही थे, जिन्होंने महाराष्ट्र से भारतीय जनता पार्टी को सत्ता की कुर्सी से अलग रखने के लिए तीनों पार्टियों को एक किया और अब तक सहज तरीके से सरकार चला रहे थे। पिछले 15 महीनों से शरद पवार न सिर्फ सरकार के कामकाज पर नजर रख रहे हैं, बल्कि जब-जब कोई पेच फंसा तो उनकी दखल देखी गई। वह उद्धव ठाकरे को सलाह भी देते रहे और संकट का हल निकालते रहे। यहां तक कि एंटीलिया केस में भी शरद पवार ने उद्धव ठाकरे से पिछले सप्हाह बैठक की थी, जिसके बाद परमबीर सिंह को मुंबई पुलिस आयुक्त के पद से हटा दिया गया।
यह महाराष्ट्र विकास अघाड़ी का ही संयुक्त फैसला था कि हेमंत नागराले को नया पुलिस चीफ बनाया जाए ताकि मुंबई पुलिस में गंदगी को साफ किया जाए। हालांकि, उस वक्त तक सचिन वाझे को लेकर शिवसेना आलोचकों के निशाने पर थी, मगर परमबीर सिंह के लेटर बम के बाद अब चीजें बदल गई हैं और अब एनसीपी निशाने पर है। शरद पवार की पार्टी एनसीपी अब विश्वसनीयता के संकट का सामना कर रही है और अब ऐसा लग रहा है कि पवार को देशमुख को हटाने को लेकर फैसला लेना ही होगा।
एनसीपी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, शरद पवार देशमुख को गृह विभाग से बाहर स्थानांतरित करने की योजना बना रहे थे। हिन्दुस्तान टाइम्स ने बताया था कि कैसे शरद पवार गृह विभाग में देशमुख के उत्तराधिकारी के रूप में अलग-अलग विकल्पों पर विचार कर रहे थे। पार्टी नेताओं के अनुसार, उन्होंने कुछ समय बाद देशमुख को गृह विभाग से बाहर करने की योजना बनाई ताकि कोई यह आरोप न लगाए कि सचिन वाझे मामले को लेकर यह फैसला लिया गया है।
हालांकि, अब परिस्थितियां बदल गई हैं। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस में लेटर बम के बाद टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इस बार शरद पवार की पार्टी कटघरे में है। ऐसे में भाजपा पूरी तरह से महाराष्ट्र सरकार पर हमलावर रहेगी। माना जा रहा है कि बदले हुए हालात में शरद पवार जल्द ही कुछ बड़ा फैसला लेंगे और देशमुख को तुरंत इस्तीफा देने के लिए कह सकते हैं। हालांकि, राज्य एनसीपी प्रमुख जयंत पाटिल ने देशमुख को हटाने की विपक्ष की मांग को खारिज कर दिया है। मगर हालात ऐसे हैं कि सरकार पर कोई संकट न आए, इसके लिए शिवसेना और कांग्रेस दबाव बना सकती है।
यहां यह भी ध्यान देने वाली बात है कि जब 2019 में महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार बनी तब से अनिल देशमुख गृह मंत्री के पद के लिए शरद पवार की पहली पसंद नहीं थे। शरद पवार के भतीजे अजीत पवार गृह मंत्रालय के पोर्टफोलियो के लिए उत्सुक थे, मगर एनसीपी के कई वरिष्ठ नेता इसके पक्ष में नहीं थे क्योंकि अजीत के खिलाफ कांग्रेस-राकांपा सरकार में सिंचाई मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान सिंचाई परियोजनाओं में कथित अनियमितताओं के संबंध में जांच चल रही है।
इधर, अनिल अंबानी केस और सचिन वाझे मामले को राज्य विधानसभा के अंदर और बाहर जिस तरह से अनिल देशमुख ने हैंडल किया, उससे एनसीबी के टॉप प्रभावित नहीं हुए। एनसीपी प्रमुख के करीबी सहयोगियों के अनुसार, पवार गृह मंत्रालय के पोर्टफोलियो के लिए अजीत, पाटिल और स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे के नाम पर विचार कर रहे थे। मगर अब पार्टी मुश्किल स्थिति में आ गई है।
इस प्रकरण ने शरद पवार की पार्टी के साथ-साथ महाराष्ट्र विकास अघाड़ी की विश्वसनीयता पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। इसके अलावा, यह अभी तक ज्ञात नहीं है कि एंटीलिया और सचिन वाझे मामले का नतीजा क्या होगा। एक सीनियर एनसीपी मंत्री ने कहा कि एनआईए अभी भी इस मामले की जांच कर रही है। हमें नहीं पता कि सचिन वाझे ने जांच एजेंसी को क्या बताया है। परमबीर सिंह द्वारा देशमुख के साथ सचिन वाझे के लिंक के आरोपों ने गठबंधन वाली महाराष्ट्र सरकार यानी एमवीए के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। बीजेपी राज्य में कानून-व्यवस्था ध्वस्त होने का हवाला देते हुए सरकार को बर्खास्त करने पर जोर दे सकती है।
नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस लगातार जोर देकर कहते रहे हैं कि एंटीलिया मामले का एमवीए सरकार से कोई बड़ा संबंध है। उन्होंने आरोप लगाया था कि सचिन वाझे सरकार में कुछ लोगों के लिए एक “रिकवरी एजेंट” था। राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई का कहना है कि यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि आगे क्या होगा। जो सरकार कुछ महीने पहले काफी सहज दिख रही थी, वह अब कमजोर दिख रही है। यह अपने सबसे बुरे संकट का सामना कर रहा है। लोगों का मानना था कि पवार कुशलतापूर्वक सरकार चला सकते हैं। यह विश्वास इस तरह के संकटों के साथ लंबे समय तक नहीं रह सकता है। विधायकों के बीच संदेह भी हो सकता है कि क्या पवार एमवीए को मुसीबत से बाहर निकाल सकते हैं और यह गठबंधन सरकार की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।