…तो क्या भविष्य में शिक्षक स्कूलों से हो जाएंगे गायब ?
घरघोड़ा (गौरीशंकर गुप्ता)। गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम: के मंत्र पुराणिक ग्रंथों में आदि अनादि काल से हमारे भारतीय संस्कृति में विद्यमान है, गुरू शब्द ही अपने आप में तपिपावन है हमारे भारतीय संस्कृति संस्कार में भगवान से बड़ा दर्ज़ा गुरू को दिया जाता है, गुरू ब्रम्हा गुरू विष्णु की अनुगंज के साथ पूरे देश में अज्ञानता के अंधकार को दूर कर ज्ञान की रोशनी फैलाने वाले शिक्षकों को याद कर हमेशा से सम्मान किया जाता रहा है। परंतु लोगों को यह जानकर आश्चर्य होगा आने वाले समय में स्कूल के बच्चों को इतिहास के विषय में पढ़ने को मिलेगा स्कूलों में कभी शिक्षक पढ़ाते थे जिन्हें सरकार द्वारा स्कूल में भर्ती कराया जाता था। वर्तमान समय में परिवर्तन लगातार जारी है हर क्षेत्र में उसी तरह शिक्षा के क्षेत्र में भी ऐसा परिवर्तन देखने को मिला सकता है जहां विद्यालय में शिक्षक के बिना स्कूल संचालित होगा ऐसा भी दिन देखने को मिल सकता है परिवर्तनशील भविष्य में?
आजाद भारत के आरंभिक काल से लेकर अबतक के व्यवस्थाओं का उल्लेख करने पर हम देख पायेंगे शिक्षा के क्षेत्र में लगातार परिवर्तन का अलग अलग प्रयोग देखने को मिलता है, इसमें कुछ प्रयोग सफल रही कुछ विफल शिक्षा नीति पर अंग्रेजी हुकूमत की सलाह सिपेकार लार्ड मैकाले की पद्धति ने भारतीय शिक्षा को बुरी तरह से प्रभावित कर रखे हैं, आज तलक भी उसका असर देखने को मिलता है, हमारी शिक्षा प्रणाली में मैकाले पद्धति का लगातार विरोध शिक्षाविदों ने किया यह कहते हुए की हमारी शिक्षा प्रणाली प्राचीन है हमने दुनिया को ज्ञान विज्ञान दिया हमारे पास वो सारे ज्ञान थे जो आज लुप्त हो चुके हैं इसका कारण सिर्फ मैकाले को माना जाता है, मैकाले ने हमारे देश की प्राचीन ज्ञान को नष्ट कर अपने हितों के अनुरूप बदलाव कर प्राचीन ज्ञान को साल दर साल खत्म करने की साज़िश रचा गया, इस कारण शिक्षित समाज पूरी तरह से प्रभावित हुआ है, जिसको हमारे देश के महान शिक्षाविदों ने समझा और आजादी के बाद सरकार के साथ मिलकर जहां जहां परिवर्तन किया जाना चाहिए वहां करने का प्रयास किया गया फिर भी देश का बहुत बड़ा वर्ग मैकाले काल से ग्रसित हो चुका था। देश के वास्तविक ढांचा तैयार करने में शिक्षा की अहम भूमिका होती है देश के आवश्यकता के अनुसार उसे ढालने का प्रयास निरंतर जारी रहा है इन तमाम प्रयासों के बाद भी आज देश में एकलव्य जैसा शिष्य नहीं मिलता ना ही इन लाखों शिक्षकों में कोई अरस्तू या चाणक्य नहीं मिलता है इस संबंध में समझा जा सकता है इस साइंस युग में जैसा हमारी विचारधारा है वहां एकलव्य सा शिष्य अरस्तू चाणक्य जैसा गुरू की आवश्यकता महसूस नहीं होती है, ऐसे विचारों के साथ तर्क़ सुनने को मिलता है आम जन जीवन में समाज में शिक्षा सिर्फ साधन मात्र बनकर रहा गया है आज की शिक्षा प्रणाली को देखा जाए तो शिक्षा का मान नौकरी पाना ही रह गया है। आज समाज में आदर्श जीवन जीने वालों की कमी का कारण हमारी शिक्षा प्रणाली है, सवाल उठना लाजिमी है ऐसा शिक्षा पद्धति में उच्च समाज का निर्माण हो सकता है। क्या विश्व पटल पर फिर से भारत विश्वगुरू बन सकता है ?
क्या भविष्य में शिक्षा हासिल करना सिर्फ ज्ञान प्राप्त करना ही रह जायेगा, जिस दिशा में शिक्षा पद्धति आगे बढ़ रहा है वहां आने वाले समय में बच्चों को कर पर ही कंप्यूटर पर पढ़ते नजर आयेंगे।
मध्य प्रदेश शासन काल में उस समय के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह ने विद्यालयों में शिक्षकों की कमी दुर करने के लिए नवीन भर्ती प्रक्रिया में शिक्षाकर्मी शिक्षामित्र जैसे अर्धशासकीय सेवकों की नियुक्ति किया था इस नव श्रृजन की श्रृंखला में विद्यालयों में शिक्षकों की कमी दूर करना एवं सुदुर वानंचल क्षेत्र में विद्यालयों की स्थापना के साथ साथ बेरोजगार युवाओं को नौकरी श्रृजन कर देना था। यह बात सही है इस पद के श्रृजन करने के बाद हजारों युवाओं को नौकरी मिला परन्तु विडंबना यह कि सरकारी शिक्षकों के समान और उनके बराबर कार्य के बाद भी इन शिक्षाकर्मियों को वेतन विसंगति दुर करने के लिए अधिकांश समय सरकार से मांग करने में बीतता रहा है। अब तरह के शिक्षा व्यवस्था में हम भविष्य की कल्पना करें तो बिना शिक्षक के शिक्षा ग्रहण किया जाये यह भी कोई आश्चर्य नहीं होगा।