जब एक ही मंच पर मिले दो अंतरराष्ट्रीय कथा वाचक, अनिरुद्धाचार्य महाराज और पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के मिलन पर जयकारों से गूंजा गुढ़ियारी का कथा पंडाल

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रायपुर। अनिरुद्धाचार्य महाराज ने अवधपुरी मैदान गुढ़ियारी में स्व. सत्यनारायण बाजारी (मन्नू भाई) की पुण्य स्मृति में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के सप्तम और अंतिम दिवस प्रभु गौरी-गोपाल को पुष्प माला अर्पित कर आरती की। छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, मंत्री बृजमोहन अग्रवाल भी सभा स्थल पहुंचकर महाराजश्री से प्रदेश की खुशहाली का आशीर्वाद लिए एवं उनका अभिनंदन किए। आज मंच का मुख्य आकर्षण बागेश्वर सरकार पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का आगमन, उदबोधन और भजन गायन रहा।

 कथा का आरंभ करते हुए महाराजश्री ने पूछा कि प्रभु को पाने का उचित माध्यम क्या है? प्रेम या पूजा? इसे विस्तार से समझाते हुए उन्होंने बताया कि प्रभु को पाने का उचित माध्यम प्रेम है,पूजा उन्हें पाने की औपचारिकता है। मीरा ने कृष्ण जी से प्रेम किया था। प्रभु धन, वैभव नहीं देखते,वे भक्त के हृदय में प्रेम देखते हैं।

महाराजश्री ने कहा कि भरी राजसभा में द्रौपदी की साड़ी खिंची जा रही थी। वे अपने सभी करीबियों को याद कर-2 आवाजें दे रहीं थी, सभी को बुला रहीं थीं पर कोई उनकी लाज बचाने सामने नहीं आया, परंतु जैसे ही वे अपने भाई गोविंद को याद कीं वे तुरंत आये और लीला से उनकी लाज बचाये। 

युद्ब के दौरान भीष्म पितामह ने पाण्डवों के वध का प्रण लिया। श्रीकृष्ण, यह बात अर्जुन को बताये। अर्जुन ने कहा प्रभु जब आप हमारी चिंता कर रहे हो तब भला हम कैसे चिंतित होंगे, हम निश्चिंत हैं। युद्ध में दुर्योधन ने श्रीकृष्ण की औक्ष्हणी सेना मांगी, अर्जुन ने श्री कृष्ण को मांगा और वे जीत गए।

महाराजश्री ने कहा कि सलाह सदैव श्रेष्ठ से ली जानी चाहिए तभी वह काम आयेगी। श्रीकृष्ण ने आठ कन्याओं रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा से विवाह किया था। असुर राज नरकासुर ने 16 हजार 100 कन्याओं का हरण कर बंदी बना लिया था। किसी तरह इन कन्याओं ने श्रीकृष्ण से मदद मांगी, तब उन्होंने नरकासुर का वध कर इन कन्याओं को मुक्त करवाया। समाज, लोक-लाज के भय से बचने इन कन्याओं ने श्रीकृष्ण के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा, तब श्रीकृष्ण ने इन सभी से विवाह कर समाज में इन्हें सम्मान दिलवाया। इस तरह श्रीकृष्ण ने सोलह हजार एक सौ आठ कन्याओं से विवाह किया।

महाराजश्री ने कथा में श्रीकृष्ण-सुदामा की द्वारका में हुई भेंट को भी जीवन्त किया कि कैसे भगवान अपने बाल सखा सुदामा के पैरों में पड़े छाले, मैले-कुचैले फटे वस्त्र देखकर द्रवित हो उठे। उन्हें प्रेम से गले लगाया, उनके पैरों को धोते हुए आंसु भी निकल रहे थे। सुशीला भाभी के भेजे चिवड़ा-चिन्नी खाकर वे आनंदित हो रहे थे और रुक्मणि जी को भी खिला रहे थे। उन्होंने बिना बताये ही सुदामा के जीवन को सुखमय बना दिया।
जब श्रीकृष्ण देह त्याग अग्नि में समाहित हुए तब उनका सम्पूर्ण शरीर जलकर राख हो गया परंतु हृदय स्पन्दित होता रहा। वही हृदय भगवान  जगन्नाथ के हृदय में आज भी स्पन्दित हो रहा है।


आज की कथा में महाराजश्री मेरो मोहन की बातें, या मैं जानूं या वो जाने…!! बिरज में होली खेले नंदलाल…!! आदि सुमधुर संगीतमय भजन सुनाये, जिस सुनकर हजारों श्रद्धालु झूमते-नाचते रहे।

जब कथा पंडाल में पहुंचे बागेश्वर धाम सरकार पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री 

कथा के अंत में आचार्यश्री धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के आगमन के साथ ही पूरा पंडाल हर्षोल्लास से भर उठा। एक ही मंच पर दो अंतरराष्ट्रीय कथा वाचकों का मिलन सभी को अभीभूत कर रहा था। पंडित शास्त्री जी ने इसी स्थान में की गई अपनी कथा का स्मरण किया और श्रद्धालुओं की मांग पर – चोला माटी के राम….! झूपत-2 आबे दाई… !! भजन के माध्यम से सभी का दिल जीत लिया। दोनों ही संत हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना को साकार करने निकले हैं जिसे सर्वत्र समर्थन मिल रहा है।

महाराजश्री अनिरुद्धाचार्य ने मंच से कहा कि सन् 2026 में श्री कृष्णा बाजारी परिवार द्वारा पुन: श्रीमद् भागवत कथा करवाई जाएगी, जिसके लिये वे पुन: कथा वाचन करने आयेंगे।
सम्पूर्ण कार्यक्रम की व्यवस्था में ओमप्रकाश पप्पू मिश्रा, ओमकार बैस, विकास सेठिया, नितिन कुमार झा, दीपक अग्रवाल, अभिषेक अग्रवाल, सौरभ मिश्रा, संजय मित्तल, वीरेन्द्र पारख, रीतेश राठौर, शैलेष शर्मा, अनिल रायचुरिया आदि सहित सैकड़ों पदाधिकारी एवम् कार्यकर्ता सक्रिय रहे। उक्त जानकारी मीडिया प्रभारी नितिन कुमार झा ने दी।

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