जगन्नाथ मंदिर में महाप्रभु को बांधे गए 21 सौ राखियां ; पुरन्दर मिश्रा ने कहा- पूरे ब्रम्हाण्ड में भगवान जगन्नाथ का ही मंदिर है जहां की जाती है भाई-बहन की पूजा
रायपुर। रक्षा बंधन से पहले गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ को राखियां बांधे गए। उत्तर विधानसभा के विधायक एवं जगन्नाथ मंदिर सेवा समिति के अध्यक्ष पुरन्दर मिश्रा ने बताया कि रक्षाबंधन का त्यौहार भगवान जगन्नाथ से किस तरह से जुड़ा हुआ है। उन्होने ने कहा कि पूरे ब्रम्हाण्ड में भगवान जगन्नाथ का एक मात्र मंदिर है जहां भाई-बहन के मूर्ति की पूजा की जाती है। इसी उपलक्ष्य में इस वर्ष रक्षाबंधन के अवसर पर परंपरागत रूप से रक्षा बंधन को धूमधाम से मनाने जगन्नाथ मंदिर में आज विशेष आयोजन किया गया है, जिसमें बहनों ने 2100 राखियां भगवान जगन्नाथ को बांधी।
जगन्नाथ सेवा समिति रायपुर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कॉलेज, स्कूल बच्चों एवं क्षेत्र के विभिन्न महिला संगठन सहित महिला मोर्चा की बहनों ने भगवान जगन्नाथ जी को राखी बांधी तथा प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त किया। विदित हो कि रक्षाबंधन के दिन महाप्रभु जगन्नाथ जी के भाई बलभद्र जी का जन्मदिन होता है। इस अवसर पर मन्दिर समिति द्वारा यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसकी अगवाई क्षेत्रीय विधायक व जगन्नाथ सेवा समिति के अध्यक्ष पुरन्दर मिश्रा ने की। कार्यक्रम का आकर्षण का केंद्र यह बना की पहले महिलाओं एवं बच्चों ने सबसे पहले महाप्रभु जगन्नाथ जी को राखी बांधी जिसके बाद उन्होंने विधायक पुरन्दर मिश्रा जी को भी राखी बांधकर प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त लिया।
विधायक पुरन्दर मिश्रा ने कार्यक्रम की दी जानकारी पुरन्दर मिश्रा ने रक्षाबंधन के त्यौहार का भगवान जगन्नाथ से संबंध को विस्तारपूर्वक उल्लेख करते हुए बताया कि रक्षाबंधन न सिर्फ एक त्यौहार है बल्कि भाई बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक भी है। रक्षाबंधन के अवसर पर ही आज हम आपको भगवान जगन्नाथ से जुड़ी रक्षाबंधन की एक ऐसी ही परंपरा के बारे में बता रहे हैं। हिंदू धर्म में चार धाम की यात्रा को अत्यंत पवित्र एवं महत्वपूर्ण माना गया है। इन्हीं चारों धामों में से एक है उड़ीसा के समुद्र तट पर स्थित पुरी का जगन्नाथ मंदिर। यह मंदिर आश्चर्यजनक रहस्यों से भरा हुआ है। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। सावन माह की पूर्णिमा के दिन समग्र भारत में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है, परंतु उड़ीसा में पूर्णिमा को “गम्हा पूर्णिमा” के नाम से जाना जाता है।
आज इस अवसर पर देवताओं के पास ‘भोग मंडप’ की समाप्ति के बाद श्री सुदर्शन एक पालकी पर चढ़कर मार्कंडा तालाब तक जाते हैं। मार्कंडा तालाब में सेवक भगवान बलभद्र की मिट्टी की मूर्ति बनाते हैं और विशेष अनुष्ठान करते हैं। सेवक मंत्रों का जाप करते हैं और मूर्ति में प्राण फूंकते हैं। तत्पश्चात, तालाब में विसर्जित करने से पहले मूर्ति को भोग चढ़ाया जाता है। पंडित मंत्र पढ़ कर मूर्ति की प्रतिष्ठा कर देता है और मूर्ति को भोग निदान किया जाता है। फिर मूर्ति को तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। विसर्जन के बाद भगवान सुदर्शन अन्य तीन आश्रमों के लिए रवाना हो जाते हैं। जगन्नाथ पुरी में रक्षाबंधन को मनाने का यह तरीका बेहद खास है।