जो दूसरों के बारे में सोचता है,उसे भगवान धनधान से भर देते हैं : अनिरुद्धाचार्य महाराज

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रायपुर । यदि भगवान आपकी तरफ देखते हैं तो पीठ हमारी तरफ और हमारी तरफ तो पीठ आपकी तरफ होगी। ध्रुवजी ने अपनी माँ से चार प्रश्न किए थे और उनसे नाराज होकर उन्होंने तप किया और उसके बाद सेवा में लग गए। हमारी कथाएं, वेद-पुराण के सार का एक मात्र उपाय है,आप भगवान का चिंतन करें,समाज को भगवान मान कर सबकी सेवा करें। भगवान कृष्ण बोले अर्जुन जब तुमने उसे मणि दिया तो उसने अपने बारे में सोचा, मैं बंगला बनाऊंगा, राजा बनुंगा और जब मैंने उसे कुछ पैसे दिए तो उसने अपने बारे में नहीं दूसरे के बारे में सोचा। जो दूसरों के बारे में सोचता है उसे भगवान धनधान से भर देते हैं। उक्त प्रवचन अवधपुरी मैदान गुढिय़ारी में स्व. सत्यनारायण बाजारी (मन्नू भाई) की पुण्य स्मृति में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन रविवार को विश्व विख्यात कथावाचक अनिरुद्धाचार्य महाराज ने श्रद्धालुजनों को दिए।पंडाल पड़ा छोटा,आयोजकों ने तत्काल की व्यवस्थारविवार को विश्व विख्यात कथावाचक अनिरुद्धाचार्य महाराज की कथा सुनने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालुजन सुबह से ही पहुंचने लग गए थे। आयोजक कान्हा बाजारी और उनकी टीम को तत्काल डोम के बाहर एक अलग से पंडाल लगाना पड़ा लेकिन यह भी छोटा पड़ा गया। लोग सड़कों में बैठकर अनिरुद्धाचार्य महाराज की कथा सुन रहे थे। दूध चढ़ाने की जो पुरानी परंपराएं थी,वह सही थी, आज की नहींअनिरुद्धाचार्य महाराज ने श्रद्धालुजनों से कहा कि भगवान शंकर पर दूध कब चढ़ाया जाता है,सावन मास में लेकिन यह क्यों? क्योंकि पहला पानी गिरता हैं आषाढ़ में और जब पानी गिरता हैं तो बुजुर्ग लोग बोलते थे कि इस पानी में नहाना मत क्योंकि यह पानी प्रदूषित होता है। आषाढ़ में पानी गिरेगा तो घास तो उगेगा ही और इस जहरीले पानी से उगी घास को गाय ने खाया और दूध दिया तो बुजुर्गों ने सोचा यह हमारे बच्चों के पीने योग्य नहीं है क्योंकि इस जहरीले पानी के उगे घास हो इस गाय ने खाया था,तो इसे फेंकने की सोची तो फेंके कहां तो सब लोगों ने सोचा यह गौरस है तो शंकरजी को चढ़ा देते हैं, तो दुध चढ़ाने का पुण्य भी मिल जाएगा। आज से 100-200 साल पहले जितने भी शिवालय थे सभी तालाबों, नदियों के किनारे थे, आपके आसपास कोई पुराना शिव मंदिर होगा वहां जरुर जलाशय होगा। सारा पानी जाता था जलाशय में उसमें मछलियां होती थी और वह इस दूध का आनंद लिया करती थी। उस समय तो आदमी तालाबों और नदियों में नहाता था, लेकिन इस समय तो तालाबों में गंदगी होने की समस्या है जो 50 साल पहले शुरु हुई है पहले तो नाले थे ही नहीं। तुमने नदियों और तालाबों को नाला बना दिया और अब कहते हो शंकर जी का दूध जाता कहां है गटर में। पुरानी परंपराएं जो थी वह सही थी, तुम्हारे आज के समय पर जो हो रहा है जैसे नालियों में दूध जा रहा है वह गलत हो गया, पर आस्था है शिवजी पर। 10 रुपये के दूध चढ़ाने से भी शिवजी प्रसंन्न हो जाते थे क्योंकि है आज 200 रुपये का दूध चढ़ाता नहीं जाता सकता है, लेकिन शराब बिना उससे ज्यादा हानिकारक है, उस 10-20 रुपये के दूध चढ़ाने से।अनिरुद्धाचार्य महाराज ने श्रद्धालुजनों से कहा कि अपनी गृहस्थी मस्त होकर हमारी बात मान लो मन प्रभू के चरण में लगाओ। बच्चों को कुसंगति से बचाओं, शराब इत्यादि चीजों की लत में पड़े बच्चों को इनसे निकालो। आप सभी से कहना चाहूंगा कि गृहस्थ में रहकर भगवान की चिंतन करो। मान मेरा कह ना नहीं तो पछताएं…। मरने के पहले भगवान में मन लग जाए तो तुम सारे बंधनों से मुक्त हो जाओगे। बेटा कहने वालों तुम्हारा बेटा एक दिन पड़ोसी बन जाएगा, शादी होने दो, पत्नी आने दो, माँ-बाप को टांटा करके बेटा चला जाएगा। यह हमारा जीवन है वह अकेलापन है, यहां कोई नहीं है आपका। गृहस्थी का कार्य करके इस दुनिया से निकल लोग, घर में मरना मत बहुत कष्ट होता है। मरने के पहले भगवान में मन लग जाए तो तुम सारे बंधनों से मुक्त हो जाओगे। यह मानव का शरीर हमें क्योंकि मिला है बंधने के लिए या खोलने के लिए – इस संसार में आप बंधने आए हैं या खोलने इस बारे में महाराजश्री ने श्रद्धालुजनों से विचार लिया। संसार में आए है हम खोलने के लिए बंधने के लिए नहीं, हम किससे बंधे हैं परिवार, व्यहार से। आपके जाने का किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है, दो-चार दिन रोक कर फिर से चांट-पकोड़ी खाने लग जाते हैगृहस्थ आश्रम 25 साल का होता है जिसमें आप बेटा-बेटी का विवाह कर तीर्थ यात्रा पर निकल जाओ। हमारे यहां मरने को भी उत्सव कहते है, इसलिए मुर्दे के साथ बैंड-बाजा चलते है। यह उत्सव कब मनेगा जब आप अपने जीवन को प्रभू से जोड़ लोगे। आपके जाने का किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है, दो-चार दिन रोक कर फिर से चांट-पकोड़ी खाने लग जाते है। और तो छोड़ों जिस दिन में तुम मरोगे तुम्हारी लाश सामने पड़ी रहेगी और दुनिया चाय पीती रहेगी और रोते रहेगी। यह दुनिया ऐसी है हमारे बाद क्या होगा सब बढिय़ा ही होगा। इसलिए मरते समय इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले गोविंद नाम लेकर मेरे प्राण तन से निकले….। मरते समय भगवान का चिंतन हो फिर प्राण जाए इससे बढिय़ा बात कुछ नहीं हो सकता। मन ही राम से मिलता है और मन ही फजीहत भी करता हैहम सबका मन चंचल है और हमारी परेशानी व दुख का कारण मन है। सारे फसाद का चढ़ मन है, इसलिए इसे कट्रोल करने के लिए बड़े-बड़े संतों ने प्रयास किया, आज छोटा सा प्रयास हम भी करते है। खाने, पीने, जाने का मन नहीं है, पति-पत्नी मन पसंद की नहीं मिली, काम मन पसंद का नहीं, बच्चे मन की करते है, पूरी जिंदगी में झंझट मन की है। घास की झोपड़ी में रहने वाला छत्तीसगढ़ का आदमी अपनी पत्नी और बच्चो में खुश रहता है, यदि घास की झोपड़ी में उसका मन लग रहा है और वह खुश है, वहीं किसी का मन महलों में नहीं लग रहा है तो वह दुखी है। सुख और दुख मन से है, मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। मन ही राम से मिलता है और वही फजीहत भी करता है। प्रेक्टिस कराने से जब शेर, हाथी, घोड़ा और बंद को वश में किया जा सकता है तो आप भी प्रेक्टिस करोगे अपने मन को तो आप भी उसे वश में कर सकते हो। यह संभव नहीं है क्योंकि भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण इसी बात को लेकर अर्जुन को समझाते है कि उसे अपने मन को कैसे वश में करना है। रोज भगवान का जप करो और यह हमें क्योंकि करना चाहिए, नाम जप इसलिए करना चाहिए क्योंकि जब हम नाम जप करेंगे तो उसका फल आपको जरुर मिलेगा। जब शरीर में गर्मी भर जाती है तो वह गर्मी के रुप में बाहर आती है, अर्जुन के रोम-रोम से कृष्ण-कृष्ण की ध्वनि निकला करती थी क्योंकि अर्जुन के भीतर कृष्ण समाए हुए थे।

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