कुरकुट नदी की रूह तक निकालने सक्रिय रेत माफिया
तेजी से बढ़ा है खनिज संपदा का दोहन
घरघोड़ा (गौरीशंकर गुप्ता) । घरघोड़ा क्षेत्र के विभिन्न बालू घाटों से बालू का अवैध उठाव जारी है. दर्जनों ट्रैक्टरों में हर दिन बालू का उठाव कर अवैध तरीके से बाजार में बेचा जा रहा है. सरकारी स्तर पर हो रहे निर्माण कार्यों में भी चोरी के बालू उपयोग किए जा रहे हैं. खनिज व राजस्व विभाग के अधिकारी- कर्मचारी कुरकुट नदी को बालू माफियाओं के हवाले कर चैन की नींद सो रहे हैं. घरघोड़ा क्षेत्र में लगभग 05 से 06 बालू घाट हैं, जिनमें बैहामुड़ा, चरपल्ली-बरभांठा (घरघोड़ी) कारिछापर-छिरभौना (टेरम) आमापाली (कंचनपुर) और बरौद शामिल हैं, जिनकी खनिज विभाग द्वारा नीलामी की जाती है. इनमें आदि शामिल हैं. बालूघाटों की नीलामी नहीं होने के कारण बालू का अवैध कारोबार और उसकी कीमत में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है. इसमें अवसरवादी तथाकथित स्थानीय नेताओं से लेकर अधिकारी कर्मचारियों तक की हिस्सेदारी का होना संदिग्ध है. सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों को पता है कि नीलामी नहीं होने के कारण गैरकानूनी तरीके से बालू का उठाव हो रहा है, तब भी बालू का अवैध कारोबार बेरोकटोक जारी है. घरघोड़ा क्षेत्र की जीवनदायिनी कुरकुट नदी से अवैध तरीके से बालू का उठाव कर दर्जनों ट्रैक्टरों में लादकर शहरी व ग्रामीण क्षेत्र के अनेकों प्रतिष्ठानों में थोक के भाव में रेत की आपूर्ति की जाती है. क्षेत्र में लगातार हो रहे निर्माण कार्यों के कारण बालू की खपत बढ़ गई है. बिना टेंडर या रॉयल्टी प्राप्त किये बगैर अनुमति के नदियों से बालू का उठाव गैरकानूनी होने के बावजूद भी सरकारी मशीनरी खर्राटे ले रही है. इस सम्बंध में अनेकों बार संबंधित विभागों को विभिन्न समाचार पत्रों के माध्यम से समय-समय पर ध्यानाकर्षित किया जाता रहा है, उसके बाद भी अवैध रूप से रेत परिवहन कर लोगों की मांग के मुताबिक दिनदहाड़े तो खपाया ही जाता है, इसके अलावा अंधेरा होते ही उससे बड़े पैमाने पर रेत का अवैध उत्खनन परिवहन शासकीय संरक्षण में जारी है, जिससे भारी मात्रा में रेत का अवैध उत्खनन परिवहन होने के कारण वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है. एक ओर जहाँ सरकारों द्वारा जलवायु परिवर्तन के लिए अपने स्तर पर हर संभव प्रयास किया जा रहा है, उसके बावजूद भी रेत का अवैध उत्खनन परिवहन पर रोक लगाने शासन-प्रशासन अपने आप को बेवश पा रहे हैं. वहीं कभी अपनी कागजी खाना-पूर्ति के लिए कभी-कभार रेत से भरे दो-चार वाहनों की धर-पकड़ कर अपनी पीठ थपथपाते नजर आते हैं. तो वहीं धर-पकड़ की चपेट में आये वाहन मालिक अपने रसूख व अन्य माध्यमों से पकड़े गए अपने वाहन को सरकारी गिरफ्त से छुड़वाने में कामयाब हो जाते हैं. अहम तर्क तो यह है कि रेत से भरे वाहन पकड़ने की औपचारिकता निभाई जाती है. उन पकड़े गए वाहनों के असली मालिक का नाम सामने नहीं आता और पकड़े गए वाहन के चालक के विरुद्ध प्रकरण बनाकर उस पर जुर्माने की राशि ठोंककर अपना कर्तव्य इतिश्री कर लेते हैं. यदि संबंधित अधिकारी-कर्मचारी सही मायने में वाहन मालिकों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करते तो मजाल है कि रेत घाटों से कोई भी एक पाव रेत भी चोरी कर सकता क्या? किंतु सरकारी सिस्टम अपने स्वार्थ पूर्ति करने में ही व्यस्त रहते हैं. वजह यही है कि रेत के घाटों से रेत का अवैध उत्खनन परिवहन का सिलसिला जारी रहता है. जानकारी तो यहां तक भी मिली है कि कई सरकारी सेवक इन रेत चोरों से हर माह नजराना के रूप में एक मुश्त उगाही कर लिया करते हैं. और इसी वजह से कुछ रेत माफिया इसे अपना एक नम्बर का व्यवसाय बना रखे हैं. आपको बता दें कि पूर्व में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अपने रायगढ़ जिले के प्रवास के दौरान इन्हीं नदियों का महाआरती भी कर चुके हैं. यदि रेत के अवैध कारोबार पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाने को सरकारी तंत्र सोंच रहा है तो उनके पास यही उपाय बचा है कि या तो अवैध रूप से रेत लदे किसी भी प्रकार के वाहन को नियमतः राजसात किया जाए या उन वाहन के मालिक को जेल की हवा खिलाई जाए तो शायद इस तरह के अवैध कारोबार को रोका जा सकता है?