16 साल की शीतल देवी : दोनों हाथ नहीं, पैरों से करती है अचूक तीरंदाजी
शीतल देवी ने वर्ल्ड पैरा आर्चरी चैंपियनशिप के फाइनल में बनाई जगह
सेमीफाइनल में हमवतन सरिता को 137-133 के स्कोर से हराया
पिल्सेन। जीवन में कुछ कर गुजरने का जुनून हो तो इंसान हर चुनौती को मात दे सकता है। चुनौती चाहे जैसी भी हो, इंसान की जिद के सामने उसे झुकना ही पड़ता है। जिद और जुनून वो दरिया होता है, जिस तरफ भी चल पड़ता है रास्ता बन जाता है। ऐसा ही कुछ कर रही हैं भारतीय महिला तीरंदाज शीतल देवी। शीतल दुनिया की एकमात्र बिना हाथ वाली महिला तीरंदाज हैं। शीतल देवी वर्ल्ड पैरा आर्चरी चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंच गई हैं। 16 वर्षीय एथलीट ने इस टूर्नामेंट के महिला वर्ग के कंपाउंड इवेंट के फाइनल में जगह बनाई है। चेक रिपब्लिक के पिल्सेन में हो रही इस चैंपियनशिप में शुक्रवार को शीतल देवी ने सेमीफाइनल में अपनी हमवतन सरिता को हराकर फाइनल में जगह पक्की की। उन्होंने 137-133 के स्कोर से जीत हासिल की। विश्व पैरा तीरंदाजी के फाइनल में पहुचनें वाली वह दुनिया की पहली बिना हाथों की महिला तीरंदाज बन गईं।
दूसरा अंतरराष्ट्रीय इवेंट : देवी इस सप्ताह विश्व तीरंदाजी पैरा चैंपियनशिप में डेब्यू किया लेकिन यह उनका पहला अंतरराष्ट्रीय इवेंट नहीं है। चेक गणराज्य में ही उन्होंने मई में आयोजित यूरोपीय पैरा तीरंदाजी कप में सिल्वर मेडल जीता था।
पेरिस पैरालंपिक का हासिल किया टिकट : शीतल ने पेरिस पैरालंपिक का टिकट भी हासिल कर लिया है। अगर वह फाइनल जीत जाती हैं तो वह खिताब जीतने वाली दुनिया की बिना हाथों की पहली महिला तीरंदाज बन जाएंगी। शीतल बेहद गरीब परिवार से हैं। उनके पिता किसान और मां बकरियों को संभालती हैं।
11 महीने पहले शुरू की आर्चरी : 16 साल की शीतल देवी जम्मू-कश्मीर के लोही धार गांव की रहने वाली हैं। वह जम्मू की माता वैष्णोदेवी तीरंदाजी अकादमी की ट्रेनिंग लेती हैं। शीतल के जन्म से ही हाथ नहीं हैं। लेकिन कभी उन्होंने इसकी वजह से खुद को कमजोर नहीं समझा। उसने केवल 11 महीने पहले शूटिंग शुरू की थी, लेकिन इसने कम समय में वह उस स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं जिसके बारे में कुछ लोग केवल सपना देख सकते हैं।
कोच ने की मदद : वर्ल्ड आर्चरी से बात करते हुए शीतल देवी ने कहा कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि तीरंदाजी कर सकती हैं लेकिन कोच कुलदीप कुमार के एक फोन कॉल से सब कुछ बदल दिया। कोच ने कहा, ‘मैंने उससे अकादमी में आने और अन्य लोगों को शूटिंग करते देखने के लिए कहा। वह तेजी से आगे बढ़ीं। मैं उसे राष्ट्रीय चैंपियनशिप में ले गया। वह उत्साहित थी और उसने विकलांगताओं वाले कई पैरा तीरंदाजों को देखा। उसे जल्द ही खेल में दिलचस्पी हो गई।’