वैज्ञानिकों के हाथ लगी बड़ी कामयाबी, सोना भी बना सकते हैं ब्लैक होल
नई दिल्ली। वैज्ञानिकों ने ब्लैक होले के बारे में दुनिया को बड़ा जानकारी दी है। उन्होंने दावा किया है कि ब्लैक होल सोना भी बना सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि कई भारी धातुओं को बनाने के लिए उन परिस्थितियों की आवश्यकता होती है जिनका पृथ्वी पर होना असंभव है। वैज्ञानिकों की नई रिसर्च के मुताबिक, ऐसे तत्व नवजात सक्रिय ब्लैक होल के ठीक बाहर के छल्ले भी बना सकते हैं। यह उस वक्त हो सकता है कि जब वह धूल और गैस को अपनी ओर खींच रहा हो। इस चरम में वातारवण में भी उत्सर्जन प्रोटोन को न्यूट्रॉन में बदलने का मौका मिलता है जिसकी वजह से न्यूट्रॉन की संख्या बढ़ती है और तत्वों और धातु बनते हैं। जीएसआई हेमलोल्ट्ज सेंटर के खगोल भौतिकविद ने इस बारे में बताया है। उनकी टीम ने इसका अध्यन कैसे किया यह भी जानकारी दी है। जब बिंग बैंग की घटना हुई थी, तो उस समय ब्रह्माण्ड में कई सारे तत्व नहीं थे। जब तारों का निर्माण हो गया तब उनकी क्रोड़ में परमाणु केंद्रकों का आपस में टकराव होने लगा। इससे पहले ब्रह्मांड में सिर्फ हाइड्रोजन और हीलियम ही थे। तारों के नाभिकीय संलयन की वजह से अतंरिक्ष में भारी तत्वों के निर्माण की शुरुआत हुई। तारों के मरने के बाद ये तत्व अंतरिक्ष में फैले। सुपरनोवा विस्फोट और एक साथ टकराने वाले न्यूट्रॉन तारों के विस्फोटों के बाद भारी तत्वों का निर्माण हो पाया। इस विस्फोटों में इतनी ऊर्जा होती है कि ऊर्जावान परमाणु के पकड़ में एक दूसरे के न्यूट्रॉन आ जाते हैं। इस प्रोसेस को रैपिड न्यूट्रॉन कैप्चर प्रोसेस या आर-प्रोसेस कहा जाता है। यह इतना तेज होता है कि रेडियोधर्मी विकिरण भी नहीं हो पाता है। इससे पहले ही केंद्रकों में न्यूट्रॉन का जुड़ाव हो जाता है। लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि ऐसी और कितनी स्थितियां हैं जिनमें आर प्रक्रिया हो सकती हैं, लेकिन नवजात ब्लैक होल को सबसे मजबूत दावेदार माना जाता है। दो न्यूट्रन तारों के विलय के बाद ब्लैक होल का निर्माण होता है। जीएसआई हेमलोल्ट्ज सेंटर के खगोलभौतिकविद और उनके सहयोगियों ने यह जानने की कोशिश की कि क्या ऐसा भी हो सकता है। रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों ने कम्प्यूटर सिम्यूलेशन के माध्यम से अलग अलग स्थितियों की जांच की। इस जांच में उन्होंने पाया कि अगर स्थितियां उसके मुताबिक बनती हैं तो प्रक्रिया न्यूकलियसिंथेसिस इस हालात में बन सकती है। इसमें डिस्क का कुल भार एक निर्णायक कारक साबित हो सकता है। शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई कि भविष्य में इनकी परीक्षण करने की संभावना बढ़ गई है।