देवस्तंभ की देवी-देवताओं ने की परिक्रमा,चार दिवसीय रियासतकालिन ऐतिहासिक देवमेला की रविवार से हुई शुरुआत
कांकेर। रविवार को दोपहर सबसे पहले राजमहल में करीब चालीस गांवों से आए देवी-देवताओं की विधि-विधान से पूजा अर्चना किया गया। पुजारियों ने विधि विधान से पूजा कर परम्परा अनुसार देवी देवताओं के साथ मेलाभाटा मैदान देवमेला के लिए निकले तो पूरा शहर आस्था में डूब गया। मेलाभाटा मैदान में एक साथ सभी देवी देवताओं ने सबसे पहले ढाई परिक्रमा की और देवस्तंभ के चक्कर के लिए चले तो आस्था की भीड़ दर्शन के लिए टूट पड़ी। राजमहल में राजाधीराज आदित्य प्रताव देव,अश्वनी प्रताप देव,सेवक भक्तू पटेल,पप्पू पटेल,दुबे,शीतला मंदिर पुजारी खिलावन प्रसाद माली,पूरन माली, सेवक महेश ठाकुर,संजू,नारद सहित अन्य व पदाधिकारी शामिल रहे।
रविवार को सभी लोगों ने देवमेला में सुख समृद्धि की कामना करते हुए देवी देवताओं की पूजा किया। पूजा होने के बाद चार बजे के बाद खरीदी शुरू हुई। राजमहल में से बातचीत में महाराज अश्वनी प्रतापदेव ने बताया कि कांकेर के देव मेले का आयोजन वर्ष 1938 से होते आ रहा है। सबसे पहले राजा भानुप्रताप देव ने इस मेले की परम्परा को शुरू किया। तब से देवी देवताओं की पूजा अर्चना के बाद चार दिवसीय मेला आम जनता के लिए खोल दिया जाता है। वैसे तो 52 गांव के देवी देवताओं को इस देव मेला में शामिल होने के लिए हर साल निमंत्रण दिया जाता है। हर साल अधिकांश गांव से देवी देवताओं के साथ ग्रामीण मेला में शामिल होते हैं।
उन्होंने बताया कि सबसे पहले सभी देव देवताओं की टोटी राजमहल पहुंचती है। राजमहल में विधि विधान से देवी देवताओं की पूजा होती है। कांकेर के ऐतिहासिक मेला को देखने के विदेश से पर्यटक आते हैं। विदेशी पर्यटकों को रूकने का बंदोबस्त किया जाता है। इस बार के देवमेला में करीब 40 गांव के देवी देवता शामिल हुए हैं। आस्था के इस देवमेला में आम जनता की खुशहाली,सुख शांति के लिए पूजा अर्चना किया जाता है। इस साल मेला विधि विधिन से पूजा अर्चना कर मनाया जा रहा है। इस बार के मेले में लोगों में काफी उत्साह देखने को मिल रहा है। देवमेला में ढाई परिक्रमा के बाद सभी देवी देवताओं की टोली माता शीलता मंदिर पहुंची और बारी बारी से पूजा किया।
चांवल से सभी देवी देवताओं की किया पूजा अर्चना
रविवार को जब देवी-देवताओं की टोली के साथ गायता पूजारी मेलाभांटा की ढाई परिक्रमा शुरू किए तो परंपरा के अनुसार उनका चावल लाई और फूल से जगह-जगह स्वागत किया गया। राजमहल में सबसे पहले देवी देवताओं का चावल से स्वागत किया गया। राजपरिवार के पुरोहित के अगुवाई में आंगा देव, गायता, सिरहा, गुनिया, पटेल और डांग पकड़े लोगों की टोली नगर भ्रमण करते मड़ईभाठा मैदान में पहुंचे और विधि विधान से स्तम्भ की ढाई परिक्रमा किया। दूर दराज से आए ग्रामीण महिलाएं, बच्चे, बड़े-बुजुर्ग सभी देवी-देवताओं के दर्शन किए। वहीं गाजे-बाजे की धुन पर देवी, देवता, सिरहा, गुनिया थिरकते रहे। गायता पुजारियों ने कहा पूजा आम जनता के सुख शांति के लिए है। नए साल में नए अन्न के साथ देवी देवताओं का स्वागत किया जाता है।
जापानी टेक्नोलॉजी लगा झूला
इस बार कांकेर मेला में जापानी टेक्नालॉजी से बने लालटेन झूला आकर्षण कर केन्द्र बना हुआ है,इसके अलावा हवाई झूला,टै्रन,पानी जहाज सहित अन्य झूला,खिलौना दुकान,सजा हुआ है। मेला में ग्राम सिंगारभाट,कोदाभाट,व्यासकोंगेरा,दसपुर,संरगपाल,गोविन्दुपर सहित दर्जन से अधिक ग्राम के लोग मेला देखने के लिए आए है।