समाज और आर्थिक भेदभाव का विरोध कर, आंबेडकर ने बौद्ध धर्म को कर लिया था स्वीकार

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डॉ. भीम राव आंबेडकर आधुनिक समय के समाज सुधारक और राष्ट्रिय नेता थे, उनका जन्म 14 अप्रैल 1851 में महू इंदौर में हुआ था। उन्होंने एक दलित परिवार में उन्होंने जन्म लिया था।  उनकी माता का नाम भीमा बाई और पिता का नाम राम जी राव था, और उनके पिता एक फौजी अफसर भी थे। भारत के संविधान निर्माता बाबा साहेब अपने माता पिता के 14वीं संतान थे। बाबा साहेब के परिवार का संबंध दलित परिवार से होने की वजह से उन्हें अछूता माना जाता था।

रामजी सकपाल 1894 में सेवानिवृत्त हुए और परिवार दो साल बाद सतारा चला गया। उनके इस कदम के कुछ समय बाद, अम्बेडकर की माँ का देहांत हो गया। बच्चों की देखभाल उनके पैतृक चाची ने की और कठिन परिस्थितियों में जीवन व्यतीत किया। आंबेडकर के तीन बेटे – बलराम, आनंदराव और भीमराव – और दो बेटियाँ – मंजुला और तुलसा – बच गए। अपने भाइयों और बहनों में से केवल अम्बेडकर ने अपनी परीक्षाएँ दीं और हाई स्कूल में चले गए। उनका मूल उपनाम सकपाल था लेकिन उनके पिता ने उनका नाम स्कूल में अंबादावेकर के रूप में दर्ज किया था, जिसका अर्थ है कि वह अपने पैतृक गांव रत्नागिरी जिले के ‘अंबादावे’ से आते हैं। उनके देवरूखे ब्राह्मण शिक्षक, कृष्णजी केशव अम्बेडकर ने अपना उपनाम अंबदावेकर ’से बदलकर अपने ही उपनाम अम्बेडकर’ कर लिया था।

बचपन से ही आर्थिक और सामाजिक भेदभाव देखने वाले आंबेडकर ने अपनी पढ़ाई शुरू की। बाबा साहेब आंबेडकर ने 14 अक्टूबर सन 1956 को बौद्ध धर्म अपना लिया था, वहीं सन 1956 को भारत में उन्होंने अपने लाखों समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया। वहीं दीक्षा भूमि नागपुर में 22 प्रतिज्ञा भी ली, और इसके बाद उन्होंने 6 दिसम्बर 1956 को उन्होंने  दुनिया को अलविदा कह दिया।

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