रियल एस्टेट में मोटा पैसा, मकान या दुकान मुनाफा ही देकर जाएंगे

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प्रोपर्टी में निवेश से पहले कुछ बातों का रखना होगा ध्यान

पुराने जमाने से ही यह क्षेत्र बढ़िया कमाई का क्षेत्र रहा

फ्री होल्ड और लीज होल्ड की कुछ बातें जरूर जान लें


रियल एस्‍टेट में पैसा लगाना हमेशा से ही फायदे का सौदा माना जाता रहा है। समय के साथ कीमत में बढ़ोतरी, किराये के रूप में आमदनी और कभी भी बेचने की सहूलियत के कारण इसे एक बेहतरीन निवेश का विकल्‍प माना जाता है। प्लॉट हो, मकान हो, दुकान हो या खेत की जमीन हो हमेशा मुनाफा ही देकर जाएंगी। हालांकि इस क्षेत्र में निवेश से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है। जानकारों का कहना है कि यह ऐसा क्षेत्र है जो आपको नुकसान नहीं होने देगा। अगर आप भी प्रॉपर्टी से पैसा कमाना चाहते हैं तो आपको भी कोई घर-दुकान खरीदने से पहले कुछ बातों का ध्‍यान जरूर रखना चाहिए। रियल एस्टेट में फ्री होल्ड और लीज होल्ड प्रॉपर्टी शब्द काफी अहम हैं। ये सीधे प्रॉपर्टी के टाइटल यानी मालिकाना हक से जुड़े हैं। ये दोनों टर्म सभी तरह की प्रॉपर्टी पर लागू होते हैं, फिर चाहे प्लॉट हो, उस पर बनी बिल्डिंग, अथॉरिटी के फ्लैट, ग्रुप हाउसिंग सोसायटी फ्लैट या इंडिपेंडेंट फ्लोर। बड़े शहरों में फ्री-होल्ड के साथ लीज होल्ड प्रॉपर्टी की अच्छी खासी तादाद है। इस रिपोर्ट के जरीये जानते हैं कि कोई भी प्रॉपर्टी खरीदने पहले किन किन चीजों का ध्यान रखना जरूरी है।

फ्री होल्ड प्रॉपर्टी


फ्री होल्ड प्रॉपर्टी से मतलब है कि प्रॉपर्टी का मालिकाना हक यानी ओनरशिप राइट्स हमेशा आपके पास रहते हैं। आपके बाद वे आपके कानूनी वारिस को ट्रांसफर हो जाते हैं। यानी पीढ़ियों तक प्रॉपर्टी के इस्तेमाल, निर्माण और बेचने के अधिकार आपके परिवार पास रहेंगे। भारत में ज्यादातर प्रॉपर्टी फ्री होल्ड हैं। उदाहरण के लिए, बिल्डर ने सीधे किसी किसान से जमीन खरीदी और उस पर फ्लैट या घर बनाकर खरीदार को बेच दिया। ऐसे में बिल्डर के पास जो मालिकाना हक थे, वो पूरी तरह खरीदार को ट्रांसफर हो जाएंगे। फ्री होल्ड प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त सेल डीड, कन्वेयन्स डीड या रजिस्ट्री के जरिए होती है।

लीज होल्ड प्रॉपर्टी


लीज होल्ड प्रॉपर्टी से मतलब ऐसी प्रॉपर्टी से है, जिसमें मालिकाना हक फिक्स्ड टाइम पीरियड के लिए खरीदार को दिए जाते हैं। लीज होल्ड प्रॉपर्टी में मालिक स्टेट यानी सरकार या फिर उसकी कोई एजेंसी होती है। उदाहरण के लिए, नोएडा में किसान से जमीन अथॉरिटी खरीदती है फिर उसे बिल्डर या घर खरीदार को फिक्स्ड टाइम के लिए लीज पर दिया जाता है. यह लीज 30, 99 या 999 साल की होती है। रेसिडेंशियल प्रॉपर्टी में लीज की अवधि आमतौर पर 99 साल होती है। इस अवधि के बीतने के बाद या तो प्रॉपर्टी का मालिकाना हक सरकार के पास चला जाएगा या लीज बढ़ा दी जाएगी। लीज को 999 साल तक बढ़ाया जा सकता है। लीज होल्ड प्रॉपर्टी की डील लीज डीड के जरिए होती है।

फ्री होल्ड पर टैक्स भी कम


फ्री होल्ड प्रॉपर्टी में आपको सरकार को प्रॉपर्टी टैक्स देना होता है, जिसका इस्तेमाल सड़क, फुटपाथ, पार्क जैसी कॉमन यूज की चीजों के मेंटेनेंस में किया जाता है. लीज होल्ड प्रॉपर्टी में ग्राउंड रेंट या लीज रेंट देना होता है, जो प्रॉपर्टी टैक्स से ज्यादा होता है. हर शहर में इसके रेट अलग-अलग हैं।

फ्री होल्ड थोड़ी महंगी


लीज होल्ड प्रॉपर्टी के मुकाबले फ्री होल्ड प्रॉपर्टी महंगी होती हैं, चाहे वो सरकार बेच रही हो या प्राइवेट बिल्डर। सरकार प्राइवेट बिल्डर को भी जमीन लीज पर दे सकती है। बिल्डर को जमीन सस्ते में मिलती है तो वो उस पर फ्लैट या इंडिपेंडेंट हाउस बनाकर सस्ते में बेचता है। हालांकि, इसका नुकसान यह है लीज रिन्यू कराते वक्त चार्ज काफी ज्यादा हो सकते हैं, क्योंकि आज से 99 साल बाद लीज रिन्युअल चार्ज कितना होगा यह बता पाना मुश्किल है।

फ्री होल्ड प्रॉपर्टी ज्यादा फायदेमंद


प्राइस एप्रिसिएशन यानी रिटर्न के मामले में भी फ्री होल्ड प्रॉपर्टी बाजी मारती है। फ्री होल्ड प्रॉपर्टी की कीमत अच्छी बढ़ती है। लीज होल्ड प्रॉपर्टी के मामले में प्रॉपर्टी एप्रिसिएशन शुरू में अच्छा हो सकता है, लेकिन जैसे-जैसे लीज खत्म होने वक्त नजदीक आता जाएगा प्रॉपर्टी के दाम घटने शुरू हो जाएंगे। ऐसे में प्रॉपर्टी खरीदते समय सबसे पहले पता करें कि प्रॉपर्टी लीज होल्ड या फ्री होल्ड। कोशिश करें कि फ्री होल्ड प्रॉपर्टी ही खरीदें भले ही ये महंगी पड़ेगी लेकिन आप अपने बाद आने वाली पीढ़ी के लिए प्रॉपर्टी बनाकर जाएंगे।

नफे-नुकसान का गणित


फ्री होल्ड


ऐसी प्रॉपर्टी में पूरी ओनरशिप खरीदने वाले को ट्रांसफर होती है। ऐसी प्रॉपर्टी में आप रह सकते हैं, आसानी से बेच सकते हैं, किराए पर उठा सकते हैं।

लीज होल्ड


ऐसी प्रॉपर्टी में मालिक ज्यादातर सरकार ही रहती है। इस प्रॉपर्टी को आप लीज पीरियड तक इस्तेमाल कर सकते हैं, किराए पर उठा सकते हैं या बेच सकते हैं। लीज खत्म होने पर प्रॉपर्टी सरकार के पास चली जाएगी। लीज होल्ड प्रॉपर्टी को ट्रांसफर यानी बेचने के लिए अथॉरिटी से एनओसी लेने और ट्रांसफर चार्ज देने की जरूरत पड़ती है। स्ट्रक्चर में बदलाव के लिए भी मंजूरी चाहिए।

फ्री होल्ड पर आसानी से मिलता है लोन


फ्री होल्ड प्रॉपर्टी को गिरवी रखकर आसानी से लोन लिया जा सकता है, जबकि लीज होल्ड प्रॉपर्टी के मामले में बैंक आमतौर पर 30 साल से कम की लीज होने पर लोन नहीं देते। जैसे-जैसे लीज खत्म होने का पीरियड नजदीक आने लगेगा, बैंक लोन देने में आनाकानी करेंगे या ज्यादा इंटरेस्ट चार्ज करेंगे।

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