चंदन ने कहा- आदिवासी सीएम, केदार का रास्ता साफ

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भाजपा पर धर्म परिवर्तन का आरोप, अपनी लाचारी कबूली
अनुराग शुक्ला, न्यूज टर्मिनल, जगदलपुर
नारायणपुर से कांग्रेस के पूर्व विधायक व वर्तमान प्रत्याशी चंदन कश्यप ने आदिवासी सीएम की की मांग के साथ ही कई बातों का खुलासा कर दिया है। एक तरफ उन्होंने सीएम भूपेश बघेल की कार्यशैली पर सवाल उठाया है तो दूसरी तरफ उन्होंने यह कहा है कि सीएम चुनने का अधिकार विधायकों को होना चाहिए न कि दिल्ली में बैठे आला नेताओं को। चंदन कश्यप ने चुनाव से ठीक चार दिन पहले जो मंशा जाहिर की है इससे एक बात तो साफ है कि उन्हें यह रिपोर्ट मिल चुकी है कि जातिगत कार्ड के चलते नारायणपुर की सीट जिस तरह से त्रिकोणीय हुई इसका खामियाजा उन्हें उठाना पड रहा है। लाभ भाजपा को होना लाजमी है और इससे महज ढाई हजार वोट से पिछले चुनाव में हार का सामना करने वाले भाजपा प्रत्यासशी केदार कश्यप का रास्ता साफ हो रहा है। ऐसे में चंदन कश्यप का बौखलाना लाजमी भी है। इसके चलते ही उन्होंने भाजपा पर धर्म परिवर्तन और आदिवासियों को लडाने का आरोप लगाया है। चंदन ने यह भी कहा है कि जब विधायक अपने स्तर पर सभी की रायशुमारी पर आदिवासी विधायक चुनेंगे तभी आदिवासी हित की बात पर सुनवाई हो सकती है। उन्हें आभास है कि उनके इलाके में जब मतांतरण को लेकर आदिवासी और मसीह समुदाय के लोगो के बीच बवाल हुआ, इसपर उनकी सुनवाई सरकार ने नहीं की। यही कारण था कि चंदन खुद चाहते हुए भी उनसे सहयोग मांगने वाले मसीह समाज के लिए उनके चर्च को तोडे जाने के बाद भी कुछ करने में समर्थ नहीं दिखे। एक पूरा वर्ग खुदको करीब तीस हजार की संख्या होने का दावा कर रहा है उसने चुनाव के ठीक पहले विरोध दर्ज करते अपना प्रत्याशी ही मैदान पर उतार दिया। नारायणपुर इलाके में यदि आप मसीह समुदाय से हो तो अब समाज के नाम पर खडे प्रत्याशी को वोट देना आवश्यक है। सीट पर कौन जीत रहा है या कौन हार रहा है यह दूसरा पैमाना है।
बस्तर से ही उपजेगा बवाल
चुनाव से पहले जो भी जानकारी सामने आ रही हो लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि एक बार के विधायक चंदन कश्यप जिन्होंने भाजपा के बडे नेता और मंत्री के ओहदे वाले व्यक्ति केदार कश्यप को हराया था उन्हें सीएम भूपेश बघेल ने मंडल की कमान देकर उपकृत भी किया था। अब चंदन कश्यप ही आदिवासी सीएम की बात को लेकर अपनों से चर्चा की बात कह रहे हैं। यह बात यहीं खत्म नहीं होती है यह मानना होगा कि अंदर ही अंदर कहीं आग सुलग रही है। मंशा किसी की है, जुबान किसी की है और आने वाले समय पर खेल कोई औैर खेलेगा। बस्तर से सत्ता का रास्ता तय करने वाली सरकार को नेतृत्व चुनने के दौरान बस्तर के बवाल को झेलना होगा।

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