बेबस गौ वंशज गर्मी से तरसते पानी के लिए गौ सेवक का ढिंढोरा पीटने वाले का अता पता नहीं है !

गौठान का नहीं है नामोंनिशान ?

घरघोड़ा (गौरी शंकर गुप्ता)। भीषण गर्मी में भूजल स्तर लगा तार नीचे गिरने से क्षेत्र के अधिकांश कुए और तलाब सूख की कगार पर हैं। जिससे पानी के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के साथ साथ नगर क्षेत्र में भी हाय तौबा मचना प्रारंभ हो गया है। पानी की किल्लत से आम जनों से ज्यादा घूम रहे लावारिस बेजुबान पशु पीड़ित हैं। नगर में इन पशुओं के लिए पानी की कोई व्यवस्था नहीं होने से चिलचिलाती धूप में इनका बुरा हाल है। मालूम हो कि नगर में सैकड़ों मूक पशु लावारिस हालत में है। जो इस भीषण गर्मी में अपनी प्यास बुझाने पानी के लिए तरसते भटक रहे हैं।

इन लावारिस मवेशियों की सुध लेने के लिए ना तो नगर पंचायत तैयार है। ना गौ वंशज की रक्षा करने वाले , वर्षों पूर्व नगर के कई संवेदनशील प्रबुद्ध जन अपने घरों के सामने में सीमेंट से बनी टंकीओं में जल भर कर रखा करते थे इन निरी पशुओं को उनके मालिकों के द्वारा पूरी तरह से दोहन करने के बाद आवारा घूमने के लिए छोड़ दिया जाता है। पर अब वह परंपरा भी समाप्त हो चुकी है। पशुपालकों की क्रूरता इन निरी पशुओं को उनके मालिकों के द्वारा पूरी तरह से दोहन करने के बाद भटकने के लिए उन्हें लावारिस हालत में छोड़ दिया जाता है। ऐसे सैकड़ों मवेशियों को भटकते हुए नगर में देखा जा सकता है। इनमें अधिकांश गौ वंशज के है पशु मालिक द्वारा इन मवेशियों को भरपूर इस्तेमाल किया जाता है, तब तक इनका पर्याप्त देखभाल किया जाता है लेकिन जैसे ही बूढ़े होते हैं या किसी बीमारी का शिकार होकर कार्य करने योग्य नहीं रहे जाते हैं तो इन्हें बोझा समझकर सड़कों में भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है। सीमेंट के जंगल में तब्दील होते क्षेत्र में हरे पत्तियों व घास के अभाव में इन मवेशी के द्वारा अपने पेट की आग बुझाने के लिए पॉलिथीन और दुकानों से फेके गए पुट्ठे व कागजों को खाकर एवं नालियों का गंदा पानी को पीने के कारण इन्हें कई प्रकार की बीमारियों हो जाती है और आखिरकार इनका करुणान्त हो जाता है। नगर में भूख और प्यास से बेहाल हो कर भटकते मवेशियों के बारे में सुध लेने के लिए प्रशासन के पास वक्त नहीं है गर्मी के प्रकोप को देखते हुए नगर पंचायत कुछ अन्य संस्थाओं द्वारा आम जनों को प्यास बुझाने के लिए कई जगह प्याऊ खोल दिया जाता रहा है लेकिन नगर में मवेशियों की प्यास बुझाने का ख्याल किसी को अभी तक नहीं आया है इसलिए नगर का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आवारा मवेशियों को रखने के लिए कोइ भी सुविधाजनक व्यस्था नही की गई है उल्लेखनीय है की पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में ग्रामीण क्षेत्रों में चारा पानी के लिए भटकते आवारा मवेशियों को सुरक्षित रखने के लिए तथाकथित 14 गौठानो का निर्माण विभिन्न निर्माण एजेंसियों के माध्यम से सरकारी धन पानी की तहर बहा कर कराया गया था । मकशद था की भूखे प्यासे मवेशियों को आश्रय मिल शके किंतु ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया इसे सॉफ महसूस किया जा सकता है की पूर्ववर्ती सरकार के द्वारा बेजुबान मवेशियों के साथ क्रूर रवैया अपनाया गया गौठानो का लाभ तो सफेद नकाब पोश सरकारी सेवक गढ़ को ही उपलब्ध मिला है। वो आज गौठानो से हुए लाभ से गुलछरे उड़ा रहा है।