संजय की फतेह पर टिकी उनकी राजनीतिक शाख पूर्व मंत्री के चहेते व भाजपा व निगम अध्यक्ष की दौड़ में हैं शामिल श्यामा प्रसाद मुखर्जी वार्ड में चौतरफा घेराव

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अनुराग शुक्ला
जगदलपुर. भाजपा की राजनीति में मंत्री केदार कश्यप के करीबी माने जाने वाले निगम के पुराने खिलाड़ी संजय पाण्डे के लिए इस बार का पार्षद चुनाव धीरे धीरे टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी वार्ड के सामान्य होने से संजय पाण्डे अपने वार्ड से पांच साल के बाद एक बार फिर भाग्य अजमा रहे हैं। हालांकि भाजपा को प्रदेश सहित बस्तर में मिली करारी हार के बाद संगठन में होने वाले फेरबदल में संजय पाण्डेय का नाम भाजपा अध्यक्ष के लिए सुर्खियों में चला। संगठन ने अब तक अध्यक्ष को लेकर कोई निर्णय नहीं लिया लेकिन पूर्व मंत्री केदार कश्यप के संरक्षण और समर्थन से इस नाम पर खुला विरोध भी भाजपा में देखने को नहीं मिला। नगर निगम में करीब बीस साल से संजय पाण्डेय भी काबिज हैं और वे हमेशा ही बड़े पदों पर रहे। गत कार्यकाल में भी वे नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में रहे। इस बार उनकी जीत और भाजपाई पार्षदों के आंकडे उनके लिए निगम अध्यक्ष का रास्ता खोलते हैं। इस लिहाजे से संजय के लिए जीत अहम है। ऐसे में श्यामा प्रसाद मुखर्जी वार्ड में कांग्रेस ने निगम में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए पासा फेंका और स्थानीय युवा समीर सेन को अपना प्रत्याशी बनाया। इसके साथ ही सत्यजीत भट्टाचार्य और टापी भी

निर्दलिय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं। 22 सौ मतदाताओं के इस वार्ड में चार प्रत्याशियों के होने से मुकाबला कठिन और जीत हार कम अंतर से होने की संभावना बढ़ गई है। वार्ड में अहम बात यह है कि यहां पर जहां चुनावी प्रलोभन का दौर जोरों पर चल पड़ा है वहीं सामाजिक जोड़ तोड़ भी तेज हो गया है। वार्ड का एक बड़ा हिस्सा बंग्यि बाहुल्य है। निर्दलीय प्रत्याशी में सत्यजीत भट्टाचार्य और कांग्रेस के समीर सेन भी इसी वर्ग से हैं। ऐसे में सामाजिक वोटों का ध्रुविकरण भाजपाई प्रत्याशी को फायदा दिला सकता है। कितना और कैसा फायदा होगा यह शिक्षित वर्ग स्पष्ट नहीं कर रहा है। ऐसी स्थिति में संजय की राजनीतिक शाख उनकी जीत पर टिकी है। इस जीत और हार पर मंत्री से लेकर भाजपा का बड़ा धड़ा नजर जमाए बैठा है।
विधायक गुट अपना रसूक रखना चाहेगा बरकरार
मालूम हो कि संजय पाण्डेय ने जिस तरह से भाजपा संगठन के पदाधिकारी और वरिष्ठों से करिबी बनाई और मंत्री के खास हुए इस बीच वे कहीं न कहीं विधायक संतोष बाफना से दूर होते गए। शहर में कई बार यह बात खुलकर सामने आई कि संतोष बाफना का संजय पाण्डेय अघोषित विरोध भी करते हैं। पार्टी के सत्ता में होने से वरिष्ठों ने मामले को रफा दफा करने का प्रयास भी किया और उन्हें सफलता भी मिली। अब स्थिति विपरित है। भाजपा सत्ता से बाहर है, संतोष बाफना को विधानसभा चुनाव में शिकस्त मिल चुकी है। बाफना आने वाले समय में निगम में अपना रसूक बरकरार रखना चाहेंगे। इससे पहले निगम अध्यक्ष के तौर पर शेष नारायण तिवारी उनके नुमाइंदे के तौर पर जाने जाते रहे। इस बार वे नगरीय निकाय के चुनावी समर में नहीं हैं। ऐसे में बाफना गुट किसी अपने को ही निगम के अध्यक्ष या महापौर बनने के लिए मशक्

कत करता है तो यह राजनीति का एक हिस्सा है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी वार्ड में भी ऐसा कुछ हो रहा है जो खुलकर सामने नजर नहीं आ रहा है।
हार पर थम जीत से खुलेंगे कई रास्ते
संजय पाण्डेय की जीत से उनके लिए भाजपा में कई रास्ते खुलते हैं। मंत्री केदार कश्यप से लेकर संगठन में उनका सिक्का जमेगा साथ ही नगर निगम में अध्यक्ष बनने के लिए वरिष्ठता के आधार पर भाजपा उन्हें उपयुक्त प्रत्याशी तय करेगी। यही नहीं जीत के बाद भाजपा के अध्यक्ष के लिए पाण्डेय का दावा पुख्ता होगा और आगे की राह भी आसान होगी। इसी के विपरित यदि संजय पाण्डेय को हार का सामना करना पड़ता है तो फिलहाल राजनीतिक पथ में उनके लिए थम है।
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