कोयला सत्याग्रह में तमनार और लैलूंगा क्षेत्र से हजारों की संख्या में सम्मिलित हुए लोग

Spread the love

कार्यक्रम में देश के विभिन्न प्रदेशों से सैकड़ों की तादाद जुटे कोल सत्याग्रही

घरघोड़ा (गौरीशंकर गुप्ता) ।  गांधी जयंती के उपलक्ष्य में तमनार विकासखंड के ग्राम उरबा में आयोजित चौदहवें कोयला सत्याग्रह कार्यक्रम में तमनार, लैलूंगा एवं घरघोड़ा क्षेत्र के अलावा गुजरात, झारखंड, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र सहित देश के कोने कोने से शिरकत किए कुल 11 राज्यों के सैकड़ों आंदोलनकारियों का भरपूर समर्थन मिला। ना विधानसभा, ना लोकसभा, सबसे ऊंचा ग्रामसभा के नारों की गूंज के साथ ग्राम-सभाओं की सहमति के बगैर सरकार द्वारा थोपे जा रहे वर्तमान कोयला कानून को तोड़ने के अडिग संकल्पों के साथ एवं संविधान की 5वीं अनुसूची के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्रों के लिए बनाए गए कानून की अनदेखी की बात कहते हुए जल, जंगल और जमीन के रक्षक कहे जाने वाले उसके असल मालिक आदिवासियों की जमीनों को सरकार द्वारा शोषणवश औने-पौने दामों पर खरीदकर मुवावजे के नाम पर उन्हें झुनझुना बांटने और उनके पुरखों के खून-पसीनों की जमीनों को मुनाफ़ेखोर उद्योगपतियों के नाम कराकर उन्हें उनकी जमीनों से ही नहीं अपितु उनके घर-मकान और गांवों से भी बेदखल करने का काम किया जा रहा है। जिसके विरोध में क्षेत्र के आदिवासियों और किसानों के द्वारा सरकार की इस नीतियों का व्यापक रूप में विरोध किया गया और कार्यक्रम में उपस्थित क्षेत्रवासियों के द्वारा बाकायदा खेत, खलिहान और नदी-नालों से कोयले कोड़ कर उसे टोकरियों में भरकर रैली के माध्यम से सरकार को आईना दिखाने का काम किया। इसी तरह अनवरत 14 वर्षों से हजारों की संख्या में क्षेत्रवासियों के द्वारा आंदोलन किया जा रहा है।
जिस कार्यक्रम में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। आपको बता दे कि आदिवासियों के हक में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि खनिज संपदा का स्वामित्व सरकार के पास नहीं बल्कि यह भूमि स्वामी में निहित होना चाहिए यानी जमीन जिसकी खनिज उसकी
न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने केरल के कुछ भू-स्वामियों की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि देश में ऐसा कोई कानून नहीं है जिसके अनुसार भूमि के नीचे की मिट्टी या खनिज संपदा का स्वामित्व शासन के पास होगा, जिसमें न्यायालय ने सरकार के इस दलील को अस्वीकार कर दिया था कि भूमि के नीचे के संसाधनों पर भू-स्वामी किसी प्रकार का दावा नहीं कर सकते, न्यायालय ने कहा था कि खान एवं खनिज (विकास एवं नियमन) कानून 1957 की धारा 425 के तहत न्यायालय ने सरकार के पक्ष में सिर्फ इतना ही कहा था कि सरकार संप्रभुता के आधार पर शुल्क या कर वसूल कर सकती है और यह भी कहा था कि यह कानून किसी भी तरह से यह नहीं कहता कि खनिज संपदा में शासन का मालिकाना हक होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *