मजदूरों की 40 श्रम कानूनों को रद्दोबदल कर मोदी सरकार अपने चहेते उद्योगपतियों के हित संरक्षण कर रही : गनपत चौहान

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घरघोड़ा । केंद्र की मोदी सरकार देश की आजादी के बाद से बने 40 श्रम कानूनों को अपने चहेते उद्योगपतियों के हितों का ध्यान रखते हुए उनके कहे अनुसार 4 श्रमिक कानूनों में सीमित कर दिया गया पूर्व में श्रमिकों को मिले अधिकारों को कमजोर किया जा रहा है चाहे वह कृषि क्षेत्र में हो या सरकारी गैर सरकारी या निजी कल कारखानों संयंत्रों में ही क्यों ना हो कठोर परिश्रम करने वाले मजदूरों के अधिकारों पर यह कुठाराघात है यह कहना साउथ ईस्टर्न कोयला मजदूर कांग्रेस इंटक के केन्द्रीय उपाध्यक्ष गनपत चौहान का है। आज 9 अगस्त को एसईसीएल ट्रेड यूनियनों का संयुक्त मंच इंटक एटक सीटू तथा एचएमएस द्वारा मोदी सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ अपनी संयुक्त रूप से महापड़ाव दिवस का दिन है इस मौके पर इंटक श्रम संगठन के वरिष्ठ मजदूर नेता गनपत चौहान कहते हैं कि 1972-73 में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण कर कोयला श्रमिकों व जिनके परिजनों के जीवन स्तर में गुणात्मक परिवर्तन कर उल्लेखनीय कार्य किया था किंतु मौजूदा केंद्र में बैठी मोदी सरकार द्वारा उस दौरान मिले 40 श्रम कानूनों को बदलकर 4 कानूनों में परिवर्तन कर मजदूरों के अधिकारों को कुचलने का कार्य कर रही है जो अत्यंत ही दुर्भाग्यजनक विषय है !

4 नए लेबर कोड्स जबरन मजदूरों पर थोपे

गनपत चौहान ने यह भी कहा कि केंद्रीय भारत सरकार द्वारा 40 श्रम कानूनों को एनडीए सरकार द्वारा ध्वस्त कर 4 नए लेबर कोड्स में तब्दील कर जबरन मजदूरों पर मनमाने ढंग से थोप कर देश के करोड़ों मजदूरों को पूंजीपतियों का गुलाम बनाना चाहती है उन्होंने कहा कि इन चार श्रम संहिताओं में चार घातक खामियां है जो उन्हें श्रमिक विरोधी बनाती है यह संहिताएं ज्यादातर श्रमिकों या प्रतिष्ठानों पर लागू नहीं होती इस 4 कानूनों के लागू होने के बाद 300 से कम लोगों को रोजगार देने वाले प्रतिष्ठान श्रमिकों को आसानी से निकाल बाहर कर सकते हैं या बगैर मंजूरी के अपनी इकाई बंद कर सकते हैं, 50 से कम लोगों को रोजगार देने वालों को कार्यस्थल सुरक्षा कानूनों से छूट है और छोटे प्रतिष्ठानों में भविष्य निधि,ग्रेच्युटी बीमा और मातृत्व लाभ उपलब्ध नहीं है,दूसरा श्रम कानून से भले ही श्रम संहिताएं किसी प्रतिष्ठान पर लागू हो जाए कार्य स्थल सुरक्षा सामाजिक सुरक्षा निकाले जाने से सुरक्षा छटनी या बंदी की उपस्थिति में रियायत देने के लिए सरकारों के पास अत्यधिक गुंजाइश होगा,तीसरा-यह संहिताएं श्रमिक संघ बनाने को ज्यादा मुश्किल बनाकर दो सप्ताह के नोटिस के बिना किसी भी हड़ताल को अवैध करार देकर और ऐसी हड़ताल का समर्थन करने वालों को दंडित करके अधिकारों के लिए लड़ने की श्रमिकों की दक्षता कमजोर करती है,चौथा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह श्रम संहिताएं श्रमिकों के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों की अपेक्षा करती है,बिना लिखित अनुबंध के करोड़ों श्रमिकों की मदद कैसे की जा सकती है, ठेका श्रमिकों की स्थिति कैसे सुधारी जा सकती है एक कर्मचारी तब संघर्ष करता है जब उसकी नौकरी चली जाती है या उसे चोट लग जाती है इस संघर्ष को कैसे कम किया जा सकता है यह सहिताएं बदला हुआ कानून सभी श्रमिक कामगारों के लिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रहा है !

खड़गे के नेतृत्व में 40 श्रम कानूनों की होगी समीक्षा

कोयलांचल इंटक श्रमिक नेता गनपत चौहान बतलाते हैं कि मौजूदा कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे यूपीए की सरकार में केंद्रीय श्रम मंत्री रह चुके हैं उन्होंने अपने कार्यकाल में राष्ट्रीय सुरक्षा बीमा योजना की शुरुआत की थी और करीब 12 करोड असंगठित श्रमिकों को स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया था खड़गे श्रमिक नेता रह चुके हैं श्रमिकों की भावनाओं को समझते है, 26 राजनीति दलों से बनी इंडिया के विजयी होने के बाद बनने जा रही नई केंद्रीय सरकार में 44 श्रम कानूनों की बहाली करने के लिए इंटक को खड़गे जी से बड़ी उम्मीदें हैं !

पुरानी पेंशन की बहाली कांग्रेसी राज्यों में

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार द्वारा बंद की गई मजदूर विरोधी नीतियों को मौजूदा समय में लाखों मजदूरों कर्मचारियों की मांग को छत्तीसगढ़ और राजस्थान की मौजूदा कांग्रेस की सरकार ने पुरानी पेंशन की बहाली का मार्ग प्रशस्थ कर ऐतिहासिक निर्णय लिया है !

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